Kursi Pahiyonwali

Author: Naseema Hurjuk
Translator: Girish Kashid
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Kursi Pahiyonwali
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‘कुर्सी पहियोंवाली’ एक ऐसी विकलांग महिला के जीवन की अन्तरंग कथा है, जिसने अपनी उम्र के आरम्भिक सोलह साल एक स्वस्थ और सामान्य व्यक्ति की तरह बिताए और उसके बाद पक्षाघात से सहसा व्हीलचेयर उसका सम्बल बनी। किसी भी विकलांग व्यक्ति के भीतर इतनी जिजीविषा हो, ऐसा विरले ही दिखाई देता है। आरम्भिक बदहवासी के दौर में आत्महत्या तक कर लेने का विचार था, फिर उससे उबरने की कोशिश और उत्कर्ष! यह एकदम नए सिरे से उठने जैसी परिवर्तनकामी कथा है, जो अपनी विकलांगता की व्यथा को दूसरे विकलांग जन की पीड़ा में परिवर्तित करती है। यह कहानी एक ज़िन्दा स्त्री के संघर्ष की है। नौकरशाहों का विकलांगों के प्रति होनेवाला व्यवहार विश्वास की सीमा से परे अव्यावहारिक एवं अमानवीय रहा है। इसके बरअक्स, नसीमा एक प्रसिद्ध कार्यकर्ता बनकर उभरती हैं। एक बड़ा क़द और रोशनी बनकर सामने आती हैं। वह विकलांगों के लिए आशा की किरण हैं। पहियेवाली कुर्सी पर बैठकर भी वह हम जैसे स्वस्थ जनों को अस्वस्थ, बेचैन कराने की क्षमता रखती हैं।

यह पुस्तक पहले मराठी भाषा में छपी, उसके बाद इसका अनुवाद अंग्रेज़ी, गुजराती, कन्नड़ तथा तेलगू भाषा में हुआ और उपर्युक्त भाषाओं के पाठकों ने इसे बेहद पसन्द किया। हमें विश्वास है, हिन्दी में भी नसीमा की यह कहानी वही अनुभव दोहराएगी।

नसीमा हुरजूक की यह कहानी सिर्फ़ उनके अकेले की नहीं, बल्कि भारत के अनगिनत विकलांग जन का सच बयान करती है। इस क्रम में नसीमा एक बेहद अलग और निराला व्यक्तित्व हैं। उन्होंने विकलांगता के बावजूद न केवल अपने जीने की राह बनाई, बल्कि वह अपने चरम उत्कर्ष तक पहुँचीं। उन्होंने दूसरे विकलांग लोगों के सामने एक मिसाल रखी और उन सबको पाठ पढ़ाया।

—जावेद आबिदी; निदेशक, ‘डिसेबल्ड राइट्स ग्रुप’

 

मैं अपने जीवन में नसीमा जैसी किसी महिला से पहले कभी नहीं मिला। उन्होंने अपने तथा दूसरों के जीवन के उत्कर्ष की राह में अपनी विकलांगता को पूरी तरह बेमानी कर दिया। उन्होंने विकलांगता को एकदम नई नज़र से देखा और मंत्र दिया, ‘...कि तुममें कोई कमी नहीं है, बस, तुम दूसरों से अलग हो...’ सचमुच, यह बहुत ही प्रेरक और अनुकरणीय पुस्तक है।

—अनन्त दीक्षित; सम्पादक ‘दैनिक लोकमत’, पुणे

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2010
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 192p
Translator Girish Kashid
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Naseema Hurjuk

Author: Naseema Hurjuk

नसीमा हुरजूक

नसीमा ‘हेल्पर्स ऑफ़ द हैंडीकैप्ड, कोल्हापुर’ की सह-संस्थापिका हैं। ‘हेल्पर्स’ महाराष्ट्र की एक जानी-मानी ग़ैर सरकारी संस्था है, जो विकलांगों और उनके पुनर्वास के लिए योगदान कर रही है। नसीमा इस संस्था की अगुवाई पिछले दो दशकों से कर रही हैं। इस क्रम में उन्होंने अपनी उपलब्धियों के लिए बहुत से पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। नसीमा को केवल लोकाश्रय एवं जन सहभागिता से करोड़ों रुपयों की संरचना एवं संस्थात्मक तंत्र बुनने का श्रेय जाता है।

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