Krantikakka Ki Janm-Shatabdi

Author: Ravindra Verma
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Krantikakka Ki Janm-Shatabdi

यह उपन्यास जिस समय में अवस्थित है, वह 1857 की डेढ़ सौवीं जयन्ती के आस-पास है। इसी समय क्रान्ति कक्का की जन्म-शताब्दी भी है। युवा कक्का झाँसी में चन्द्रशेखर आज़ाद के क्रान्ति के हेडक्वार्टर के सदस्य थे जब आज़ाद काकोरी कांड के बाद इस शहर में कुछ बरस भूमिगत रहे। शिक्षक कक्का रिटायर होकर अपने दूर के भतीजे के साथ आ गए थे। झाँसी का यह मध्यवर्गीय घर इस भूमंडलीकृत समय में मध्यवर्गीय विडम्बनाओं का केन्द्र बन जाता है : इसके एक छोर पर क्रान्ति कक्का हैं जिनकी स्मृति में अपने क्रान्तिकारी दल के नौजवानों की यह शर्त है कि कौन पहले देश पर क़ुर्बान होगा; दूसरे छोर पर कक्का का प्यारा पोता है जिसके दिल्ली के पास स्थित पानी के कारखाने की बोतलों पर झाँसी की रानी की तस्वीर है—इस तस्वीर में घोड़े पर बैठी रानी का चेहरा अभिनेत्री रानी मुखर्जी का बिकाऊ चेहरा है! इसी नव-उदारवादी प्रपंच में कक्का का दूसरा पोता दिल्ली में ही अपनी नौकरी खो देता है, क्योंकि वह जिस पुरानी कपड़े की मिल में काम करता है, वह सोने के भाव बिक जाती है ताकि उस ज़मीन पर मॉल खड़ा हो सके। इसी बेकार बाप का इकलौता पुत्र अमरीका पहुँचकर स्वायत्त हो जाता है।

यह इस भूमंडलीकृत दौर में एक पुराने मध्यवर्गीय परिवार के टूटने का आख्यान है, जैसे कोई आज़ादी का शीराज़ा बिखर रहा हो। यहाँ इसी दौर की नव-औपनिवेशिक त्रासदी की आहें और कराहें हैं।

यह भारतीय नव-उदारवाद की आभ्यन्तरीकृत कथा है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 192p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Ravindra Verma

Author: Ravindra Verma

रवीन्द्र वर्मा

जन्म : 1 दिसम्बर, 1936 को झाँसी (उत्तर प्रदेश) में।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा झाँसी में। 1959 में प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. (इतिहास)।

सन् 1965 से कहानियों का पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनारम्भ। अपनी विशिष्ट छोटी कहानियों के रूप में एक नई कथा-विधा के प्रणेता माने जाते हैं। कुछ आलोचनात्मक लेखन भी।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘कोई अकेला नहीं है’, ‘पचास बरस का बेकार आदमी’ (कहानी-संग्रह); ‘क़िस्सा तोता सिर्फ़ तोता’, ‘गाथा शेखचिल्ली’, ‘माँ और अश्वत्थामा’, ‘जवाहरनगर’, ‘निन्यानबे’, ‘पत्थर ऊपर पानी’, ‘मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगा’, ‘दस बरस का भँवर’, ‘आख़िरी मंज़िल’ (उपन्यास)।

कुछ कहानियों का देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद। ‘आख़िरी मंज़िल’ का पंजाबी में।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

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