Kisan

Translator: Satyam
Edition: 2004, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Kisan

‘किसान’ (अंग्रेज़ी में ‘दि पीजशेंट्री’ और ‘संस ऑफ़ दि सॉयल’ नाम से प्रकाशित) ‘ह्यूमन कॉमेडी’ शृंखला के अन्तिम चरण की रचना है। इसकी गणना बाल्ज़ाक की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और परिपक्व कृतियों में की जाती है।

बाल्ज़ाक ने ‘ह्यूमन कॉमेडी’ की पूरी परियोजना के अन्तर्गत, अपने चार उपन्यासों में फ़्रांसीसी ग्रामीण जीवन के अन्तरंग और बहिरंग को चित्रित करते हुए, सामन्ती भूमि-सम्बन्धों के पूँजीवादी रूपान्तरण तथा आधुनिक पूँजीवाद के विकास में कृषि की भूमिका को, पूँजीवाद के अन्तर्गत गाँव और शहर के बीच लगातार बढ़ती खाई को, छोटे मालिक किसानों पर सूदख़ोर महाजनों की जकड़बन्दी को, शहरी और ग्रामीण महाजनी के फ़र्क़ को, कृषि में माल-उत्पादन के बढ़ते वर्चस्व और किसानी जीवन पर मुद्रा के आच्छादनकारी प्रभाव को तथा किसान आबादी के विभेदीकरण (डिफ़रेंसिएशन) और कंगालीकरण को जिस अन्तर्भेदी गहराई और चहुँमुखी व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया है, वह आर्थिक इतिहास या समाज-विज्ञान की किसी पुस्तक में भी देखने को नहीं मिलता।

बाल्ज़ाक शहरी मध्यवर्गीय रोमानी नज़रिए से न तो कहीं ‘अहा, ग्राम्य-जीवन भी क्या है’ की आहें भरते नज़र आते हैं, न ही उन ‘काव्यात्मक सम्बन्धों’ और पुरानी संस्थाओं-सम्बन्धों-चीज़ों के लिए बिसूरते दीखते हैं जिन्हें पूँजी या तो लील जाती है, या पुनः संस्कारित करके अपना लेती है या फिर अजायबघरों में सुरक्षित कर देती है। इसके विपरीत वह ठहरे हुए ग्रामीण जीवन की कूपमंडूकतापूर्ण तुष्टि के प्रति वितृष्णा प्रकट करते हैं और उस मध्यवर्गीय शहरी नज़रिए की खिल्ली उड़ाते हैं जिसे ग्राम्य जीवन एक ख़ूबसूरत लेंडस्केप नज़र आता है।

एक ठंडी वस्तुपरकता के साथ बाल्ज़ाक गाँवों में व्याप्त पिछड़ेपन, अज्ञानता, विपन्नता, कूपमंडूकता, निर्ममता और उस अमानवीकरण की चर्चा करते हैं जो मन्थर गति वाले अलग-थलग पड़े ‘स्वायत्तप्राय’ ग्रामीण परिवेश के अपरिहार्य गुण हैं और गाँवों में पूँजी का प्रवेश इन्हें और निर्मम-निरंकुश बनाने का काम ही करता है। पश्चिमी दुनिया में कृषि में पूँजीवाद का प्रवेश सबसे क्रान्तिकारी ढंग से फ़्रांस और अमेरिका में हुआ। वहाँ के बूर्ज्वा जनवादी क्रान्ति के उत्तरकालीन परिदृश्य को चित्रित करते हुए बाल्ज़ाक ने दिखलाया है कि ग्रामीण जीवन वहाँ भी लगभग ठहरा हुआ सा है, भविष्य को लेकर कहीं कोई उत्साह नहीं है, बाहरी दुनिया से नाम-मात्र का सम्पर्क है, नए विचारों का प्रभाव नगण्य है। खेतिहर मज़दूर, छोटा मालिक किसान, रिटायर्ड फ़ौजी—सभी आत्मविश्वास से रिक्त, रामभरोसे जी रहे हैं। खेतों में भरपूर हाड़ गलाने के बावजूद कुछ भी हासिल नहीं होता। ग़रीबी, भूमिहीनता, ऋणग्रस्तता, कुपोषण, बीमारी, ग़रीबी के चलते ऊँची जन्म दर और ऊँची मृत्यु दर—विशेषकर शिशु मृत्यु दर तथा अन्धविश्वास और भाग्यवाद का चतुर्दिक बोलबाला है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था और किसानों की स्थिति के हर पहलू को तफ़सील से देखते हुए बाल्ज़ाक किसान में समस्या के सारतत्त्व को पकड़ते हैं और बताते हैं कि सवाल भूस्वामित्व की सामन्ती व्यवस्था का नहीं है, बल्कि अपने आप में भू-स्वामित्व की पूरी व्यवस्था का ही है। सामन्ती भूस्वामी की जगह पूँजीवादी फ़ौजी जनरल या ऑपेरा गायिका के आ जाने से आम किसान की स्थिति में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। किसान की ख़ून-पसीने की कमाई के मुख्य अपहर्ता प्रायः सामने नहीं होते। वे बदलते रहते हैं, पर किसानों का रोज़मर्रे के जीवन में जिन बिचौलियों से साबका पड़ता है, उनकी स्थिति अपरिवर्तित रहती है।

किसान उपन्यास में बाल्ज़ाक रिगू-गोबर्तें गठजोड़ के रूप में व्यापारी-भूस्वामी-सूदख़ोर गठजोड़ की किसानों पर चतुर्दिक जकड़बन्दी की तस्वीर उपस्थित करते हैं और दिखलाते हैं कि किस तरह प्रशासन, न्याय, ऋण और व्यापार के पूरे तंत्र पर इस गिरोह का ऑक्टोपसी नियंत्रण क़ायम है। स्वयं बाल्ज़ाक के ही शब्दों में : ‘‘छोटे किसान की त्रासदी यह है कि सामन्ती शोषण से मुक्त होकर वह पूँजीवादी शोषण के जाल में फँस गया है।”

—सम्पादकीय आलेख से।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2002
Edition Year 2004, Ed. 2nd
Pages 304p
Translator Satyam
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 2.5
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Author: Honore De Balzac

ओनोरे द बाल्ज़ाक

जन्म : मई, 1799; तूर (फ़्रांस)।

फ़्रांसीसी क्रान्ति और उत्तरवर्ती दशक की उथल-पुथल के दौरान किसान से शहरी मध्यवर्गीय बने परिवार में जन्म। शिक्षा-दीक्षा पेरिस के कॉलेज द वान्द्रोम और पेरिस लॉ स्कूल में। शुरू में छद्म नामों से आठ उपन्यास प्रकाशित कराए, पर सभी असफल रहे। कुछ वर्ष व्यवसाय में हाथ आज़माया और क़र्ज़ में डूब गए। ‘दि वाइल्ड एसे’ज़ स्किन’ उपन्यास (1830-31) से लेखन की दुनिया में सफल वापसी। 1834 में ‘फ़ादर गोरियो’ उपन्यास के प्रकाशन के साथ ही उपन्यासों-कहानियों की बृहत् शृंखला की योजना जिसे 1842 में ‘ह्यूमन कॉमेडी’ का नाम दिया। 1845 में 144 उपन्यासों की पूरी सूची प्रकाशित कराई और इसे पूरा करने में जी-जान से जुट गए। दिन-रात की मेहनत से शरीर छीजता चला गया और 1850 में मात्र 51 साल की उम्र में मृत्यु। 144 उपन्यासों का सपना पूरा न हो सका पर ‘ह्यूमन कॉमेडी’ के अन्तर्गत रचे गए कुल नब्बे उपन्यासों-उपन्यासिकाओं और कहानियों में पसरा उनका कृतित्व उन्नीसवीं शताब्दी के पहले पाँच दशकों के दौरान सामन्तवाद की पुनर्स्थापना के प्रयासों से लेकर पूँजीवादी व्यवस्था, संस्कृति एवं सामाजिक मनोविज्ञान के विकास के विविध पक्षों का प्रामाणिक दस्तावेज़ बन गया।

‘गोबसेक’, ‘यूज़ीन ग्रांदे’, ‘दि नुसिंजेन हाउस’, ‘दि पीजेंट्स’, ‘कज़िन पोंस’, ‘लॉस्ट इल्यूजन्स’, ‘ए डॉटर ऑफ़ ईव’, ‘स्टडी ऑफ़ ए वुमन’, ‘दि मिडिल क्लासेज़’, ‘फ़ादर गोरियो’, ‘दिन थर्टीन’, ‘दि शुआन्स’ जैसे उपन्यासों में बाल्ज़ाक ने ‘फूहड़ धनिक नौबढ़ों’ के प्रभाव में अपना मान-सम्मान खो देनेवाले अभिजातों, चतुर-चालाक डीलरों व अन्य महत्त्वाकांक्षी लोगों और साथ ही उनके शिकार बननेवालों; लूट के वैधीकरण, विश्वासघात और घृणित षड्यंत्रों, मृत्यु और निष्क्रिय जीवन के बीच अपना विकल्प चुनते युवा और नैतिक अधःपतन, कला की वेश्यावृत्ति तथा ख़रीदने-बेचने के सिद्धान्तों के वर्चस्व से पारिवारिक और निजी सम्बन्धों में पैदा होनेवाली अनन्त त्रासदियों को पटुता के साथ कथाबन्धों में बाँधकर न केवल उस युग का ‘प्रकृत इतिहास’ लिख दिया, बल्कि मुनाफ़ा, माल-उत्पादन और मुद्रा के वर्चस्व की दुनिया के सारतत्त्व को उद्घाटित करने में अद्वितीय सफलता हासिल की।

निधन : 1850; पेरिस (फ़्रांस)।

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