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Honore De Balzac

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ओनोरे द बाल्ज़ाक

जन्म : मई, 1799; तूर (फ़्रांस)।

फ़्रांसीसी क्रान्ति और उत्तरवर्ती दशक की उथल-पुथल के दौरान किसान से शहरी मध्यवर्गीय बने परिवार में जन्म। शिक्षा-दीक्षा पेरिस के कॉलेज द वान्द्रोम और पेरिस लॉ स्कूल में। शुरू में छद्म नामों से आठ उपन्यास प्रकाशित कराए, पर सभी असफल रहे। कुछ वर्ष व्यवसाय में हाथ आज़माया और क़र्ज़ में डूब गए। ‘दि वाइल्ड एसे’ज़ स्किन’ उपन्यास (1830-31) से लेखन की दुनिया में सफल वापसी। 1834 में ‘फ़ादर गोरियो’ उपन्यास के प्रकाशन के साथ ही उपन्यासों-कहानियों की बृहत् शृंखला की योजना जिसे 1842 में ‘ह्यूमन कॉमेडी’ का नाम दिया। 1845 में 144 उपन्यासों की पूरी सूची प्रकाशित कराई और इसे पूरा करने में जी-जान से जुट गए। दिन-रात की मेहनत से शरीर छीजता चला गया और 1850 में मात्र 51 साल की उम्र में मृत्यु। 144 उपन्यासों का सपना पूरा न हो सका पर ‘ह्यूमन कॉमेडी’ के अन्तर्गत रचे गए कुल नब्बे उपन्यासों-उपन्यासिकाओं और कहानियों में पसरा उनका कृतित्व उन्नीसवीं शताब्दी के पहले पाँच दशकों के दौरान सामन्तवाद की पुनर्स्थापना के प्रयासों से लेकर पूँजीवादी व्यवस्था, संस्कृति एवं सामाजिक मनोविज्ञान के विकास के विविध पक्षों का प्रामाणिक दस्तावेज़ बन गया।

‘गोबसेक’, ‘यूज़ीन ग्रांदे’, ‘दि नुसिंजेन हाउस’, ‘दि पीजेंट्स’, ‘कज़िन पोंस’, ‘लॉस्ट इल्यूजन्स’, ‘ए डॉटर ऑफ़ ईव’, ‘स्टडी ऑफ़ ए वुमन’, ‘दि मिडिल क्लासेज़’, ‘फ़ादर गोरियो’, ‘दिन थर्टीन’, ‘दि शुआन्स’ जैसे उपन्यासों में बाल्ज़ाक ने ‘फूहड़ धनिक नौबढ़ों’ के प्रभाव में अपना मान-सम्मान खो देनेवाले अभिजातों, चतुर-चालाक डीलरों व अन्य महत्त्वाकांक्षी लोगों और साथ ही उनके शिकार बननेवालों; लूट के वैधीकरण, विश्वासघात और घृणित षड्यंत्रों, मृत्यु और निष्क्रिय जीवन के बीच अपना विकल्प चुनते युवा और नैतिक अधःपतन, कला की वेश्यावृत्ति तथा ख़रीदने-बेचने के सिद्धान्तों के वर्चस्व से पारिवारिक और निजी सम्बन्धों में पैदा होनेवाली अनन्त त्रासदियों को पटुता के साथ कथाबन्धों में बाँधकर न केवल उस युग का ‘प्रकृत इतिहास’ लिख दिया, बल्कि मुनाफ़ा, माल-उत्पादन और मुद्रा के वर्चस्व की दुनिया के सारतत्त्व को उद्घाटित करने में अद्वितीय सफलता हासिल की।

निधन : 1850; पेरिस (फ़्रांस)।

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