Khatam Nahin Hote Baat-Hard Cover

₹395.00
ISBN:9788126718849
Out of stock
SKU
9788126718849

जीने का सहजबोध और उसको सहारती–सँभालती दुधमुँही कोंपलों–सी कुछ यादें, कुछ कचोटें, कुछ लालसाएँ और कुछ शिकायतें। बोधिसत्व की ये कविताएँ समष्टि–मानस की इन्हीं साझी ज़मीनों से शुरू होती हैं, और बहुत शोर न मचाते हुए, बेकली का एक मासूम–सा बीज हमारे भीतर अँकुराने के लिए छोड़ जाती हैं। इन कविताओं की हरकतों से जो दुनिया बनती है, वह समाज के उस छोटे आदमी की दुनिया है जिसके बारे में ये पंक्तियाँ हैं : ‘‘माफ़ी माँगने पर भी/माफ़ नहीं कर पाता हूँ/छोटे–छोटे दु:खों से/उबर नहीं पाता हूँ/पावभर दूध बिगड़ने पर/कई दिन फटा रहता है मन/कमीज़ पर नन्ही–सी खरोंच/देह के घाव से ज़्यादा देती है दु:ख।’’ (छोटा आदमी)

छोटे आदमी की यह दुनिया जिस पर आज क़िस्म–क़िस्म की बड़ी चीज़ें और दुनियाएँ निशाना साध रही हैं, अगर सुरक्षित है, और रहेगी, तो उन्हीं कुछ छोटी चीज़ों के सहारे जिन्हें बोधिसत्व की ये कविताएँ रेखांकित कर रही हैं। मसलन साथ पढ़ी मुहल्ले की उन लड़कियों की याद जिनके बारे में अब कोई ख़बर नहीं (‘हाल–चाल’); गाँव के वे बेनाम–बेचेहरा लोग जिनके सुरक्षित साये में बचपन बीता, और आज महानगर की भूल–भुलैया में जिनकी फिर से ज़रूरत है (‘मैं खो गया हूँ’); अपने घावों में सबको पनाह देनेवाली उस आवारा लड़की का प्यार जिसके अपने पास कोई जगह कहीं नहीं (‘कोई जगह’)। और ऐसी ही अन्य तमाम चीज़ें जो हम साधारण जनों के संसार को हरा–भरा रखती हैं, इन कविताओं के माध्यम से हम तक पहुँच रही हैं।

‘लालच’ शीर्षक कविता में व्यक्त इस छोटे आदमी की नग्न लालसा हिन्दी कविता को एक नया प्रस्थान बिन्दु देती प्रतीत होती है। लग रहा है कि थोड़ी हिचक के साथ ही, लेकिन अब वह उन सुखों में अपनी भी हिस्सेदारी चाहता है, जिनका उपभोग बाक़ी पूरा समाज इतने निर्लज्ज अधिकारबोध के साथ कर रहा है। ‘ख़त्म नहीं होती बात’ के रूप में कविता–प्रेमियों के सम्मुख यह ऐसी कविता–पुस्तक है जो काव्य–प्रयोगों के लिए नहीं अपने भाव–सातत्य और वैचारिक नैरन्तर्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 128p
Price ₹395.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Khatam Nahin Hote Baat-Hard Cover
Your Rating
Bodhisatwa

Author: Bodhisatwa

बोधिसत्व

मूलनाम : अखिलेश कुमार मिश्र

जन्म : 11 दिसम्बर, 1968 को उत्तर प्रदेश के भदोही ज़‍िले के सुरियावाँ थाने के एक गाँव भिखारी रामपुर में जन्म।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला से। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. और वहीं से तार सप्तक के कवियों के काव्य-सिद्धान्त पर पीएच.डी. की उपाधि ली। यूजीसी के रिसर्च फ़ैलो रहे।

प्रकाशन : ‘सिर्फ़ कवि नहीं’ (1991), ‘हम जो नदियों का संगम हैं’ (2000), ‘दु:ख-तंत्र’ (2004), ‘ख़त्म नहीं होती बात’ (2010) ये चार कविता-संग्रह प्रकाशित हैं। ‘तारसप्तक-काव्य सिद्धान्त और कविता’ नामक शोध-प्रबन्ध (2011)। लम्बी कहानी ‘वृषोत्सर्ग’ (2005) प्रकाशित।

सम्‍पादन : ‘गुरवै नमः’ (2002), ‘भारत में अपहरण का इतिहास’ (2005), ‘रचना समय’ के ‘शमशेर जन्मशती’ अंक का सम्‍पादन (2010)।

प्रकाशनाधीन : ‘कविता की छाया में’ (लेख, समीक्षा और व्याख्या)।

अन्य लेखन : ‘शिखर’ (2005), ‘धर्म’ (2006) जैसी फ़‍िल्मों और दर्जनों टीवी धारावाहिकों का लेखन। 

सम्मान : कविता के लिए ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्‍कार’, ‘गिरिजा कुमार माथुर सम्मान’, ‘संस्कृति अवार्ड’, ‘हेमन्‍त स्मृति सम्मान’, ‘फ़‍िराक़ सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’ आदि प्राप्त हैं।

विशेष : कुछ कविताएँ देशी-विदेशी भाषाओं में अनूदित हैं। कुछ कविताएँ मास्को विश्वविद्यालय के स्नातक के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं। दो कविताएँ गोवा विश्व विद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल थीं।

फ़‍िलहाल : पिछले कई साल से मुम्बई में बसेरा है। सिनेमा, टेलीविज़न और पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखाई का काम।

ईमेल : abodham@gmail.com

ब्लॉग : http://vinay-patrika.blogspot.com

Read More
Books by this Author
Back to Top