— दिल्ली रंगमंच पर अब तक का यह सर्वोत्तम संगीत फॉम।
रोमेशचन्द्र (‘द हिन्दू’, 15 मई, 1992)
शहरों में बसे हिन्दी के नाटककार अपने नाटकों में आमतौर पर किसी बोली का उपयोग करने से कतराते हैं, जिस कारण हिन्दी में केवल बोली में लिखी गईं पाण्डुलिपियाँ अत्यन्त नगण्य हैं। ग्वालियर के आसपास प्रचलित बुन्देली और ब्रज के मिश्रण से बनी बोली में लिखा नाटक ‘खबसूरत बहू’ इस दिशा में एक स्वागत योग्य क़दम है।
—नेमिचन्द्र जैन (‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, नई दिल्ली, 21 मई, 1992)
नाटक की हर घटना मन को छू रही थी।
—जगमोहन (‘नवभारत टाइम्स’, नई दिल्ली)
प्रतिमा काजमी का सतत सन्तुलित चरित्रांकन नाटक को बाँधकर रखता है।
—कविता नागपाल (‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, नई दिल्ली, 17 मई, 1992)
जो बात स्पष्ट रूप से दिखलाई देती है, वह यह है कि चरित्रों की बारीकियों को बख़ूबी उजागर किया गया है और नाटककार ने गाँव के जीवन को देखने में काफ़ी समय लगाया है।
—मोनिका नरूला (‘इंडियन एक्सप्रेस’, नई दिल्ली, 17 मई, 1992)
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2019, Ed. 2nd |
Pages | 84p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 13.6 X 0.6 |