Kanya Vama Janani

Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Kanya Vama Janani

स्वाधीनता के बाद से ही हमारे देश के आर्थिक एवं सामाजिक ढाँचे में व्यापक परिवर्तन हुआ है। स्त्री शिक्षा का प्रसार एवं स्त्री स्वाधीनता अब विलास की वस्तु नहीं हैं वरन् जीवन के अपरिहार्य अंग बन गए हैं। स्त्री की भूमिका अब सिर्फ़ माँ, पत्नी या बेटी के रूप में घर तक सीमित नहीं है, बल्कि रोज़गार के क्षेत्र में भी अब वे समान रूप से आगे आ रही हैं। और इस परिवर्तित माहौल में महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। लेकिन उच्च शिक्षित या पढ़ी-लिखी महिलाओं में भी अपने शरीर और स्वास्थ्य के प्रति ज़्यादा जागरूकता नहीं है।

जन्म से ही शारीरिक लक्षणों में भिन्नता, किशोरावस्था में प्रवेश, यौवनप्राप्ति, विवाह, मातृत्व, शिशु पालन, प्रौढ़ावस्था में प्रवेश, रजोनिवृत्ति एवं प्रजनन क्षमता की परिसमाप्ति—नारी जीवन की इन सभी अवस्थाओं पर विस्तृत जानकारी देनेवाली संग्रहणीय पुस्तक है—‘कन्या वामा जननी’।

अपने पेशेवर जीवन में डॉ. मित्र ने इस तरह के स्वास्थ्य के प्रति औरतों को भी लापरवाह पाया है। इसके साथ ही साथ उन्होंने यह भी देखा कि कुछ महिलाओं में अपने शरीर से जुड़े तमाम वैज्ञानिक तथ्यों को जानने में काफ़ी दिलचस्पी है; और इन्हीं महिलाओं के लिए लिखी गई यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2001
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 334p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2.5
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Author: Arun Kumar Mitra

अरुण कुमार मित्र

प्रसिद्ध स्त्रीरोग विशेषज्ञ और सुयोग्य चिकित्साशास्त्री डॉ. अरुण कुमार मित्र का छात्र-जीवन आद्यन्त कृतिपूर्ण रहा। 1946 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से बहुत सारे मेडल और स्कॉलरशिप के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की। 36 वर्षों तक स्त्रीरोग चिकित्सा, प्रसूति परिचर्या, सफल ऑपरेशन कार्य और अध्यापन व शोध-कार्य। कलकत्ता विश्वविद्यालय से डी.जी.ओ. और मास्टर ऑफ़ आबस्टेट्रिक्स परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर ‘स्वर्ण पदक’ से सम्मानित, बाद में इंग्लैंड से एम.आर.सी.ओ.जी. तथा लन्दन विश्वविद्यालय से गाइनोकोलॉजिकल कैंसर पर पीएच.डी.।

कलकत्ता मेडिकल कॉलेज और पी.जी. अस्पताल में स्नातक और स्नातकोत्तर विभागों में 25 वर्षों तक अध्यापन के बाद स्वतंत्र रूप से चिकित्सा-कार्य।

 

 

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