स्वाधीनता के बाद से ही हमारे देश के आर्थिक एवं सामाजिक ढाँचे में व्यापक परिवर्तन हुआ है। स्त्री शिक्षा का प्रसार एवं स्त्री स्वाधीनता अब विलास की वस्तु नहीं हैं वरन् जीवन के अपरिहार्य अंग बन गए हैं। स्त्री की भूमिका अब सिर्फ़ माँ, पत्नी या बेटी के रूप में घर तक सीमित नहीं है, बल्कि रोज़गार के क्षेत्र में भी अब वे समान रूप से आगे आ रही हैं। और इस परिवर्तित माहौल में महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। लेकिन उच्च शिक्षित या पढ़ी-लिखी महिलाओं में भी अपने शरीर और स्वास्थ्य के प्रति ज़्यादा जागरूकता नहीं है।
जन्म से ही शारीरिक लक्षणों में भिन्नता, किशोरावस्था में प्रवेश, यौवनप्राप्ति, विवाह, मातृत्व, शिशु पालन, प्रौढ़ावस्था में प्रवेश, रजोनिवृत्ति एवं प्रजनन क्षमता की परिसमाप्ति—नारी जीवन की इन सभी अवस्थाओं पर विस्तृत जानकारी देनेवाली संग्रहणीय पुस्तक है—‘कन्या वामा जननी’।
अपने पेशेवर जीवन में डॉ. मित्र ने इस तरह के स्वास्थ्य के प्रति औरतों को भी लापरवाह पाया है। इसके साथ ही साथ उन्होंने यह भी देखा कि कुछ महिलाओं में अपने शरीर से जुड़े तमाम वैज्ञानिक तथ्यों को जानने में काफ़ी दिलचस्पी है; और इन्हीं महिलाओं के लिए लिखी गई यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2001 |
Edition Year | 2024, Ed. 2nd |
Pages | 334p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 2.5 |