‘कहाँ से कहाँ’ में संकलित कहानियों में प्रवेश का रास्ता कविता से होकर निकलता है। यह रास्ता घर की तलाश करता है, लेकिन जाकर घर से नहीं मिलता।
पुस्तकें भी समाज को देखती हैं। आलोचक डॉ. राजेन्द्र मिश्र की यह बात सतीश जायसवाल की कहानियों के साथ लागू होकर इस तरह बन जाती है—सतीश की कहानियाँ भी समाज को देखती हैं...कथा त्रयी के एक प्रमुख स्तम्भ—कमलेश्वर का कहना है—सतीश की कहानियों में ‘नैरेशन’ आज भी बचा हुआ है...युवा कथाकार शशांक भी कुछ-कुछ यही बात कहते हैं—सतीश जायसवाल की कहानियों में ‘डिटेल्स’ ख़ूब उभरकर आते हैं? ये ‘डिटेल्स’ किसी एक विषय से बँधे हुए नहीं होते। इनमें ‘कैलिडोस्कोप’ के अँधेरे में खिलनेवाले रंग-बिरंगे फूलों का वैविध्य होता है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2001 |
Edition Year | 2001, Ed. 1st |
Pages | 120p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |