Kabhi Nahin Socha Tha

Author: Surjeet Patar
Translator: Chaman Lal
Editor: Chaman Lal
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹187.50 Regular Price ₹250.00
25% Off
In stock
SKU
Kabhi Nahin Socha Tha
- +
Share:

सुरजीत पातर की कविताएँ हमें एक पूरी क़ौम के जलते हुए जंगल में घिरे होने का अहसास कराती हैं। रात, अँधेरा, सन्नाटा, ख़ौफ़, चीख़, आग जैसे शब्दों की बारंबारता से वह पूरा माहौल मुखर हो उठता है। आग कभी आदमी को जलाती है और कभी आदमी के सीने में ही जल उठती है।
बँटवारे का दर्द आधुनिक पंजाब की दुखती रग है। पाँच नदियों में से ढाई हिन्दुस्तानी पंजाब के हाथ आईं। और फिर पिछले पन्द्रह वर्षों से जारी घनीभूत तनाव। यह तनाव गुरु नानक और गुरु गोविन्द सिंह के व्यक्तित्वों में टकराव से पैदा होकर पंजाब के मानसिक संसार को विभाजित करता हुआ शब्द और अर्थ तक के बीच फैल जाता है। सच्चाई का बयान करने में कभी कविता साथ देती है लेकिन कभी उसके दबाव से बिखर उठती है। जब कवि को कविता की व्यर्थता का अहसास होता है तभी हमारे सामने भाषा के पार एक जीती-जागती दुनिया खड़ी हो जाती है।
इन कविताओं में सूफ़ी परम्परा से लेकर आधुनिक काव्यान्दोलनों तक का विशाल फलक रूप और टेकनीक के स्तर पर मौज़ूद है। रूप की यह विविधता एक विशाल सच्चाई को हर बार नए तरीके से कहने और फिर भी कुछ बचा रह जाने की बेचैनी से पैदा हुई है।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 175p
Translator Chaman Lal
Editor Chaman Lal
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Kabhi Nahin Socha Tha
Your Rating

Author: Surjeet Patar

सुरजीत पातर
सुरजीत पातर का जन्म पत्तड़ कलाँ, कपूरथला, पंजाब में 14 जनवरी, 1946 को हुआ। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से पंजाबी साहित्य में एम.ए. करने के बाद वे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के भाषा-साहित्य-संस्कृति एवं पत्रकारिता विभाग में प्रवक्ता नियुक्त हुए। वहाँ लम्बे समय तक अध्यापन किया। शुरू में उनकी कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। 1973 में पहली बार पंजाबी के तीन युवा रचनाकारों ने अपना सम्मिलित लेखन पुस्तक रूप में प्रकाशित किया ‘कोलाज किताब’ शीर्षक से, जिनमें एक सुरजीत पातर थे। पातर का पहला स्वतंत्र संग्रह ‘हवा विच लिखे हर्फ़’, जिसमें केवल ग़ज़लें शामिल थीं, 1979 में उस समय प्रकाशित हुआ जब उनकी उम्र 33 वर्ष थी। 1986 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने एक पुस्तिका प्रकाशित की—‘सूरज दा हमसफर’, जिसमें पातर की चुनिंदा दस ग़ज़लें और सात कविताएँ शामिल थीं। फिर एक लम्बे अन्तराल के बाद 1992 में उनकी अधिकांश काव्य-रचनाएँ दो संग्रहों में एक साथ प्रकाशित हुईं—‘बिरख अर्ज़ करे’ और ‘हनेरे विच सुलगदी वर्णमाला’। इनमें से दूसरे संग्रह पर पातर को 1993 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। 2012 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया।
11 मई, 2014 को लुधियाना, पंजाब में उनका निधन हुआ।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top