Jungle (Raj)

Author: Upton Sinclaire
Translator: Satyam
Edition: 2003, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Jungle (Raj)

अप्टन सिंक्लेयर की सर्वाधिक चर्चित कृति ‘जंगल’ ने विगत सदी के पहले दशक में पूरे अमेरिका में एक आन्दोलन-सा खड़ा कर दिया था और अमेरिकी सत्ता को हिला डाला था। इस उपन्यास के प्रकाशन को अमेरिकी मज़दूर आन्दोलन के इतिहास की एक घटना माना जाता है। शिकागो स्थित मांस की पैकिंग करनेवाले उद्योगों और उनके मज़दूरों की नारकीय स्थिति का बयान करनेवाले इस उपन्यास ने थियोडोर रूज़वेल्ट की सरकार को ‘प्योर फूड एंड ड्रग एक्ट’ और ‘मीट इंस्पेक्शन एक्ट' नामक दो क़ानून बनाने के लिए बाध्य कर दिया था।

अनेक कठिनाइयों के बाद 1906 में पुस्तकाकार प्रकाशित होते ही ‘दि जंगल’ की डेढ़ लाख से भी अधिक प्रतियाँ हाथोंहाथ बिक गईं। अगले कुछ ही वर्षों के भीतर सत्रह भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ और लगभग पूरी दुनिया में इसे बेस्टसेलर का दर्जा मिला। ‘दि न्यूयार्क इवनिंग वर्ल्ड’ ने लिखा था : “बायरन को रातोंरात मिली प्रसिद्धि के बाद से एक किताब से एक ही दिन में वैसी विश्वव्यापी ख्याति अर्जित करने का कोई उदाहरण नहीं मिलता जैसी अप्टन सिंक्लेयर को मिली है।”

‘दि जंगल’ ने पूरे अमेरिकी समाज को झकझोर दिया। लगभग आधी सदी पहले प्रकाशित हैरियट बीचर स्टो के उपन्यास ‘अंकल टॉम्स केबिन’ (1852) के बाद यह पहली पुस्तक थी जिसने इतना गहरा सामाजिक प्रभाव डाला था।

इस उपन्यास का मूल उद्देश्य शिकागो स्टॉकयाड् र्स में व्याप्त गन्दगी और अस्वास्थ्यकर स्थितियों को उजागर करना मात्र नहीं, बल्कि इसकी मूल थीम उजरती ग़ुलामी को कठघरे में खड़ा करना है। सिंक्लेयर ने स्पष्ट बताया कि उपन्यास का उद्देश्य औद्योगिक पूँजीवाद में मेहनतकश स्त्रियों-पुरुषों की अमानवीय जीवन-स्थितियों का जीवन्त दस्तावेज़ प्रस्तुत करना और यह बताना था कि समाजवाद ही इस समस्या का एकमात्र समाधान हो सकता है। उपन्यास का सादा, रुखड़ा, निर्मम गद्य वस्तुतः उस क़िस्म के मानव-जीवन के बयान के सर्वथा अनुरूप है जो सिंक्लेयर ने शिकागो के स्टॉकयाड् र्स में देखा, जहाँ काम करनेवाले औरत-मर्द उन मूक पशुओं जैसे ही हो गए थे जिन्हें कसाईबाड़े में वे जिबह किया करते थे।

आज के नवउदारवादी दौर में भारत जैसे जिन देशों में एक बार फिर उजरती ग़ुलामी के नए-नए नर्क रचे जा रहे हैं, वहाँ के लिए सिंक्लेयर और ‘जंगल’ जैसी उनकी कृतियाँ एक बार फिर प्रासंगिक हो गए हैं।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2002
Edition Year 2003, Ed. 2nd
Pages 357p
Translator Satyam
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 2.5
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Author: Upton Sinclaire

अप्टन सिंक्लेयर

जन्म : 20 सितम्बर, 1878; बाल्टीमोर (अमेरिका)।

अप्टन सिंक्लेयर उन महान यथार्थवादी लेखकों की सुदीर्घ परम्परा की एक कड़ी थे जिन्होंने विश्व-साहित्य सम्पदा की श्रीवृद्धि करते हुए अपने-अपने युग का इतिहास प्रस्तुत किया।

सिंक्लेयर उन लेखकों में अग्रणी थे जिन्होंने पूँजीवाद के शोषक चरित्र को उसके बर्बरतम रूप में साफ़-साफ़ दिखाया। कारख़ानों में भयानक परिस्थितियों में मज़दूरों के श्रम की निर्मम लूट, पूँजीवादी राजनीति और कारोबार का भ्रष्ट चरित्र, उच्च बुर्जुआ समाज की रुग्ण, पतनशील संस्कृति और फ़ासीवादी आतंक—इन सबको उन्होंने अपने उपन्यासों में उघाड़कर रखा और साथ ही साथ मेहनतकशों और तमाम न्यायप्रिय व्यक्तियों के संघर्ष को भी उन्होंने उपन्यासों का विषय बनाया। 1906 में ‘दि जंगल’ के प्रकाशन ने उन्हें दुनिया-भर में लोकप्रिय बना दिया।

‘दि जंगल’ के बाद ‘दि मैट्रोपोलिस’, ‘किंग कोल’, ‘ऑयल!’, ‘बोस्टन’, ‘जिमी हिगिंस’ जैसे सिंक्लेयर के एक दर्जन से अधिक प्रसिद्ध उपन्यास किसी उद्योग, समुदाय या क्षेत्र के अध्ययन पर आधारित थे जो अमेरिकी समाज के एक या दूसरे कुरूप-विद्रूप या बर्बर-अमानवीय छल-छद्मपूर्ण पहलू पर रोशनी डालते थे या फिर मज़दूरों के किसी संघर्ष की घटना का कलात्मक पुनर्सृजन होते थे।

फासीवाद-विरोधी आन्दोलन के दौर में सिंक्लेयर ने ‘दि फ्लिव्वर किंग’ और ‘नो पैसारोन’ जैसे उत्कृष्ट उपन्यास लिखे। 1940 से 1953 के बीच उन्होंने ‘लैनी बड’ शृंखला के अन्तर्गत ग्यारह समकालीन ऐतिहासिक उपन्यास लिखे जिनका कालखंड 1910 से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फैला हुआ है और घटनाक्रम अनेक देशों में घटित होता है।

निधन : 25 नवम्बर, 1968; एरीजोना (अमेरिका)।

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