Juloos Wala Adami

Author: Ramakant
Edition: 2024, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Juloos Wala Adami
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‘जुलूस वाला आदमी’ कथाकार रमाकान्त का महत्त्वाकांक्षी उपन्यास है। उनके मन में इसे लिखने की रूपरेखा सन् 60 के दशक में बन चुकी थी, लेकिन इसका लिखा जाना उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक जारी रहा। यह एक राजनीतिक उपन्यास है लेकिन उससे कहीं अधिक है आजादी से ठीक पहले और बाद के सामाजिक बदलाव की अकथ कथा। इस उपन्यास के सन्दर्भ में स्वयं कथाकार ने अपनी डायरी में यत्र-तत्र जो दर्ज किया है, परिचय के लिए वही अपने में पर्याप्त है। रमाकान्त जी के शब्दों में : “हमारे देश के स्वातंत्र्योत्तर काल में व्यक्ति और समाज के जीवन की कथा कही है मैंने इस उपन्यास में। उपन्यास इतिहास का दस्तावेज नहीं होता। यह किसी कालखंड में जीवन की मूलधारा और व्यक्ति की चेतना के विकास का अंकन होता है। यही कहने का प्रयास है मेरा ...यह उपन्यास कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक तिकड़मबाजी की नीति और संघर्षशील जनपक्ष के अंतर्विरोधों और उनके टकराव को उभारता है। मेरा नायक नेता नहीं बनना चाहता। ...जुलूस आगे बढ़ता रहता है और जुलूस वाला आदमी सब पीछे छोड़ता चलता है। जुलूस को कहाँ पहुँचना है, यह जानता है, पर कैसे, किन रास्तों से होकर गुजरेगा, यह नहीं जानता।” यह उपन्यास पाठकों को इस जुलूस में सहर्ष आमंत्रित करता है। इस उम्मीद के साथ कि ‘जुलूस वाला आदमी’ का पाठक अन्तिम सफे तक रचनाकार का साथ देते हुए, जीवन में इस जुलूस से बहुत कुछ पाएगा भी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1993
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 403p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2.5
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Ramakant

Author: Ramakant

रमाकान्त

रमाकान्त का जन्म 2 दिसम्बर, 1931 को ग्राम बरौंधा, जिला मिरजापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से 1951 में स्नातक किया। एम. ए. और एलएल. बी. दोनों की पढ़ाई अधूरी रही। जीविकोपार्जन की शुरुआत इंडियन एयरलाइन्स की नौकरी से। मन नहीं रमा तो पत्रकारिता में प्रवेश। दैनिक ‘आज’ (बनारस) और ‘जनयुग’ (नई दिल्ली) में कार्य किया। उसके बाद सोवियत सूचना केंद्र में कार्य किया। कुछ वर्षों बाद त्यागपत्र देकर स्वतंत्र लेखन और कुछ दिनों तक 'क्रासाद' नामक पाक्षिक का प्रकाशन-संपादन। ‘सोवियत भूमि’ के भी संपादक रहे।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘तीसरा देश’, ‘छोटे-छोटे महायुद्ध’, ‘प्यादा फर्जी अर्दब’, ‘खोई हुई आवाज’, ‘दरवाजे पर आग’, ‘उपसंस्कार’, ‘समाधान’, ‘टूटते जुड़ते स्वर’, ‘जुलूस वाला आदमी’ (उपन्यास); ‘जिन्दगी भर का झूठ’, ‘उसकी लड़ाई’, ‘कोई और बात’, ‘कार्लो हब्शी का सन्दूक’, ‘बीच के बीस बरस’ (कहानी-संग्रह)।

हिन्दी और रूसी साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें 1969 में ‘सोवियत लैंड नेहरू सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

 6 सितम्बर, 1991 को उनका निधन हुआ।

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