प्रत्येक समाज और राष्ट्र का अपना साहित्य है, परन्तु कुछ साहित्य अपनी गहरी और व्यापक अनुभूतियों के बल से राष्ट्रीय साहित्य की सीमाओं को लाँघकर अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में पहुँच जाता है।

उज़बेक लेखक अस्कद मुख़्तार का उपन्यास ‘बहिनें’ मुझे उसी श्रेणी की रचना जँची है।

मुख़्तार के उपन्यास में चित्रित उज़बेक समाज के जीवन और उनकी समस्याओं की छवि मुझे उत्तर भारत के जीवन से इतनी मिलती-जुलती लगी कि उसे अपनी भाषा के पाठकों को दे सकने के उत्साह को दबा नहीं सका।

उज़बेक उच्चारण की ध्वनि को बनाए रखने के लिए जुलैखाँ ही रहने दिया है।

—यशपाल

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 6th
Pages 296p
Translator Yashpal
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Author: Asakad Mukhtar

अस्कद मुख़्तार

जन्म : 23 दिसम्बर, 1920; फरगाना, उज्बेकिस्तान

अस्कद मुख़्तार लेखक, कवि और अनुवादक थे। 1942 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिडिल एशिया के फ़िलोलॉजी संकाय से उन्होंने स्नातक की उपाधि ली।

1957 से 1969 तक वह राइटर्स यूनियन ऑफ़ उज़बेक एसएसआर के सचिव रहे. ऐन्दिजान पेडागॉजिकल इंस्टिट्यूट के उज़बेक विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे।

मुख़्तार को लॉरियट ऑफ़ द रिपब्लिकन सम्मान के साथ-साथ विभिन्न महत्त्वपूर्ण सम्मानों से नावाज़ा गया। वह ‘शार्क युल्दुज़ी’ और ‘गुलिस्तान’ जैसी पत्रिकाओं के सम्पादक रहे।

मुख़्तार की पहली रचना 1938 में प्रकाशित हुई। 1947 में प्रकाशित उनकी कविता ‘स्तालेवार’ ने पहली बार उज़बेक कविता में मेहनतकश की आवाज़ को बुलंद किया था। ‘माय फेल्लो सिटिजन’ और ‘सिटी ऑफ़ स्टील’ भी उनके कुछ और ऐसे ही संग्रह थे। 1954 में उनकी पहली गद्य रचना (उपन्यास) ‘सिस्टर्स’ शीर्षक से प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने ‘बर्थ’, ‘टाइम इन माय डेस्टिनी’, ‘चिनार’, ‘अमु’ जैसे उपन्यास भी लिखे। उनकी कहानी ‘द काराकल्पक स्टोरी’ और कविता ‘इन्वाल्वड इन इम्मोर्टलिटी’ क्रान्तिकारी विषयों को केन्द्र में रखकर लिखी रचनाएँ हैं। मुख़्तार ने पुश्किन, गोर्की, मायाकोवास्की, लेर्मेंतोव जैसे कई प्रसिद्ध लेखकों की रचनाओं के उज़बेक में अनुवाद किए।

मृत्यु : 17 अप्रैल, 1997

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