Jeevan Yauvan

Translator: Ramshankar Dwivedi
Edition: 2007, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Jeevan Yauvan

‘जीवन यौवन’ अन्नदाशंकर राय की आत्मस्मृति है। इसमें उनका व्यक्तिचित्र अंकित है। उनकी आशा-आकांक्षा, उनकी चिरन्तन नारी को खोजने की प्यास, उनकी सत्य को पाने की ललक, प्रशासनिक कामों में व्यस्त रहने के बाद भी अपनी लेखकीय सत्ता को बनाए रखने की प्रवृत्ति, उनका बचपन, उनकी छात्रावस्था, पढ़ने की निरन्तर ललक, अपनी भाषा की खोज, उसके लिए अपने पूर्वपुरुषों और समकालीन साहित्यिक दाय को आत्मसात् करने का प्रयास, निरन्तर प्रश्नाकुलता, जिज्ञासाएँ, उनके दिगन्तरों की खोज—ये

सब दिशाएँ उनके इस ‘जीवन यौवन’ का आधार बनी हैं।

इसमें लेखक ने अपनी सत्ता को, अपनी निजता को खोला है। इसमें ‘पथे-प्रवासे’ भी है और चिरन्तन पथ भी है, पथिक भी है, उसकी चिर-यात्रा भी है, जीवन भी है, जीवन को पार करता दूसरा छोर भी है। सरला की ओर उनका खिंचाव, प्रायः उसे नित्य पत्र लिखना, इसी पत्राचार के क्रम में उनकी गद्यभाषा में निखार आना, फिर और एक विदेशिनी के साथ लम्बे-लम्बे प्रवास, यूरोप को निकट से जानना, उन प्रश्नों को, जिज्ञासाओं को जिनसे यूरोप परिचालित हो रहा है—इन सब तरंगाघातों को इस पुस्तक में देखा जा सकता है।

सत्य और स्वप्न के आकर्षण-विकर्षण से ही अन्नदाशंकर राय के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है जिसकी बहुविध झाँकी इस पुस्तक में मिलती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 198p
Translator Ramshankar Dwivedi
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Anndashankar Roy

अन्नदाशंकर राय

जन्म : 15 मार्च, 1904

शिक्षा : 1923 में आई.ए., 1925 में बी.ए. अंग्रेज़ी ऑनर्स की परीक्षा में प्रथम, फिर 1927 में आई.सी.एस. प्रतियोगी परीक्षा में भी प्रथम। लन्दन में प्रशिक्षण के बाद 1929 में अपने कार्य-स्थल में योगदान।

अविभाजित बंगाल के विभिन्न ज़िलों में सन् 1947 ई. तक मजिस्ट्रेट और जज रहे। पश्चिम बंगाल में अनेक उच्च पदों पर रहने के बाद 1950 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया, किन्तु न्याय विभाग के सचिव-पद से मुक्ति 1951 में 47 वर्ष की उम्र में मिली। उसी समय से साहित्य-साधना के लिए शान्तिनिकेतन में वास। साहित्य अकादेमी की स्थापना के समय से ही उससे जुड़ गए। उनकी दूसरी साधना रही है दोनों बंगालों में ऐक्य स्थापना। 1967 में पत्नी के साथ हुई दुर्घटना और कलकत्ते में रहना आरम्भ।

कृतियाँ : 22 उपन्यास, 11 लघुगल्प-संग्रह, 20 कविता-लोकगीत-संग्रह, 53 निबन्ध-संग्रह; अन्यान्य भाषाओं में 14 ग्रन्थ।

सम्मान : ‘पद्मभूषण’। दो बार ‘आनन्द पुरस्कार’। ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘साहित्य अकादेमी के फ़ेलो’। विश्वभारती के देशिकोत्तम। वर्धमान और रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के डी.लिट्.। और भी अनेक पुरस्कार और पदक। पश्चिम बंग बांग्ला अकादमी के अध्यक्ष भी रहे।

निधन : 28 अक्टूबर, 2002

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