Jeep Par Sawar Illiyan

Satire
Author: Sharad Joshi
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Jeep Par Sawar Illiyan
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प्रख्यात अंग्रेजी कवि और समालोचक मैथ्यू आर्नाल्ड ने कविता को जीवन की आलोचना कहा है, लेकिन आज सम्भवत: व्यंग्य ही साहित्य की एकमात्र विधा है जो जीवन से सीधा साक्षात्कार करती है।
व्यंग्यकार सतत जागरूक रहकर अपने परिवेश पर, जीवन और समाज की हर छोटी-से-छोटी घटना पर तटस्थ भाव से दृष्टिपात करता है और उसके आभ्यंतरिक स्वरूप का निर्मम अनावरण करता है। इसीलिए व्यंग्यकार का धर्म अन्य विधाओं में लिखनेवालों की अपेक्षा कठिन माना गया है, क्योंकि अपनी रचना- प्रक्रिया में उसे वाह्य विषयों के प्रति ही नहीं, स्वयं अपने प्रति भी निर्मम होना पड़ता है।
हिन्दी के सुपरिचित व्यंग्यकार शरद जोशी का यह संग्रह इस धर्म का पूरी मुस्तैदी के साथ निर्वाह करता है। धर्म, राजनीति, सामाजिक जीवन, व्यक्तिगत आचरण-कुछ भी यहाँ लेखक की पैनी नजर से बच नहीं पाया है और उनकी विसंगतियों का ऐसा मार्मिक उद्घाटन हुआ है कि पढ़नेवाला चकित होकर सोचने लगता है—अच्छा, इस मामूली-सी दिखनेवाली बात की असलियत यह है! वास्तव में प्रस्तुत निबन्ध-संग्रह की एक-एक रचना शरद जोशी की व्यंग्य-दृष्टि का सबलतम प्रमाण है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1971
Edition Year 2022, Ed. 6th
Pages 159p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Editorial Review

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Sharad Joshi

Author: Sharad Joshi

शरद जोशी

21 मई, 1931 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में जन्मे शरद जोशी, होल्कर कॉलेज, इन्दौर के दिनों में ही एक लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे। इन्दौर के ‘नई दुनिया’ अख़बार में ‘परिक्रमा’ कॉलम से उनकी प्रसिद्धि और लेखक के रूप में पहचान बनी। पहली पुस्तक ‘परिक्रमा’ (उन्हीं लेखों का समावेश) 1958 में छपी।

उनके दो व्यंग्य नाटक ‘अन्धों का हाथी’ और ‘एक था गधा उर्फ़ अलादाद ख़ाँ’ आज भी देश-विदेश में मंचित हो रहे हैं।

अन्तिम कॉलम 'प्रतिदिन’ नवभारत टाइम्स में लगातार 7 वर्षों तक छपा।

शरद जी की 21 पुस्तकें छपी हैं—‘परिक्रमा’; ‘किसी बहाने’; ‘रहा किनारे बैठ’; ‘दूसरी सतह’; ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’; ‘यथासम्भव’; ‘यत्र-तत्र-सर्वत्र’; ‘यथासमय’; ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’; ‘प्रतिदिन’ 3 भागों में; ‘नावक के तीर’; ‘मुद्रिका रहस्य’; ‘झरता नीम शाश्वत थीम’; ‘मैं, मैं और केवल मैं’; ‘शरद जोशी एक यात्रा’ (अन्य लेखकों के विचार, डॉ. शशि मिश्रा); ‘जादू की सरकार’; ‘पिछले दिनों’; ‘दो व्यंग्य नाटक’; ‘राग भोपाली’; ‘नदी में खड़ा कवि’; ‘घाव करे गम्भीर’।

सरकारी पुरस्कारों से बचते रहे। मात्र एक ‘पद्मश्री’ 1990 में उनके खाते में। पीएच.डी. के घोर विरोधी रहे, आज उन पर ही कई पीएच.डी. हो गई हैं।

हिन्दी की पहली कॉमेडी Sitcom सीरियल ‘यह जो है ज़िन्दगी’ लिखने का श्रेय भी। ‘मालगुडी डेज़’ (हिन्दी संवाद), ‘विक्रम और बेताल’, ‘सिंहासन बत्तीसी’, ‘वाह जनाब’, ‘दाने अनार के’, ‘यह दुनिया ग़ज़ब की’ सीरियल्स भी लिखे... और ‘क्षितिज’, ‘गोधूलि’, ‘उत्सव’, ‘उड़ान’, ‘चोरनी’, ‘साँच को आँच नहीं’ और ‘दिल है कि मानता नहीं’ फ़िल्मों के संवाद भी...!

निधन : 5 सितम्बर, 1991

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