शरद जोशी के व्यंग्य का क्षेत्र बहुत व्यापक और विविधवर्णी रहा है। लेखन उनकी आजीविका का भी साधन था। एक सम्पूर्ण लेखक का जीवन जीते हुए उन्होंने अपने दैनंदिन की लगभग हर घटना, हर ख़बर को अपने व्यंग्यकार की निगाह से ही देखा। उनके विषयों में प्रमुख यद्यपि समकालीन राजनीति और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार ही रहा, लेकिन क्षरणशील समाज की भी ज़्यादातर नैतिक दुविधाओं को उन्होंने अपना विषय बनाया।
मुक्तिबोध ने कहीं कहा था कि सच्चा लेखक सबसे पहले अपना दुश्मन होता है, अपने कठघरे में जो लेखक ख़ुद को खड़ा नहीं कर सकता, वह दूसरों को भी नहीं कर सकता। शरद जोशी भी जब मौक़ा आता है, ख़ुद भी अपने व्यंग्य के सामने खड़े हो उसकी धार का सामना करते हैं। अपने अनेक निबन्धों में उन्होंने अपनी मध्यवर्गीय सीमाओं, चिन्ताओं और हास्यास्पदताओं का मज़ाक़ बनाया है।
सच्चे व्यंग्यकार की तरह उन्होंने अपने लेखन में न सिर्फ़ जीवन की समीक्षा की, बल्कि व्यंग्य की ज़मीन पर जमे रहते हुए कहानी और लघु-कथाओं आदि विधाओं में भी प्रयोग किए। कवि-मंचों पर उनकी गद्यात्मक उपस्थिति तो अपने ढंग का प्रयोग थी ही।
‘परिक्रमा’ उनका पहला व्यंग्य-संग्रह है जिसका प्रकाशन 1958 में हुआ था। इस नज़रिए से इसका अध्ययन विशेष महत्त्व रखता है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2018, Ed. 1st |
Pages | 392p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 3 |