भालचन्द्र जोशी की इन कहानियों में हमारा समय अपनी इतिहास-गति के साथ कुछ इस तरह से अवस्थित है कि यथार्थ की उत्कंठ तात्कालिकता मुकम्मल तौर पर आधुनिक कहानी के सार्वदेशिक रूपाकार में स्वायत्त हो उठती है।
भालचन्द्र जोशी के यहाँ यथार्थ भी है, और कहानी भी—अपनी सुकुमार काया में सुगठित, सुघड़ और सुचिन्तित जो यथार्थ की निपट यथार्थता को भाषा की सृजनात्मक उठान से प्रतिसन्तुलित करती है। भालचन्द्र सामाजिक वास्तविकता को उसके ऊपरी लक्षणों के आधार पर पहचानने के बजाय उसके मूलवर्ती चरित्र में रेखांकित करते हैं।
यथावसर भालचन्द्र फंतासी का प्रयोग या कल्पना का स्वैर संचरण सम्भव करते हैं। लेकिन ऐसे प्रयोग वे शिल्प-युक्ति के रूप में नहीं, बल्कि यथार्थ को यथातथ्यता से मुक्त करने के उद्देश्य से कथ्य की संश्लिष्ट अन्विति के भीतर, और उसके स्वाभाविक प्रतिफलन के रूप में करते हैं। ‘हत्या की पावन इच्छाएँ’ और ‘नदी के तहख़ाने में’ जैसी कहानियाँ दरअसल कथात्मक यथार्थ के अनूठे विन्यास को चरितार्थ करती हैं। लेकिन ज़रा ग़ौर से देखें तो सहज ही अनुभव किया जा सकता है कि इन कहानियों में आख्यानात्मक कल्पना यथार्थ के सिमटते परिसर में विलक्षण ढंग से मुक्त होती है। इस प्रक्रिया में कथा-भाषा यथार्थ की लय के साथ तरंगित होने लगती है और एक जादुई असर पैदा करती है। प्रत्येक कहानी का अपना अलग स्वाद और स्वतंत्र कथात्मक ‘डिक्शन’ है। यहाँ ब्योरों की अनलंकारिक और तथ्यात्मक भाषा से लेकर लोक-कथा की मुहावरेदार भाषा या स्वैर-सृष्टि को साकार करने में समर्थ कल्पना-प्रवण भाषा अथवा अत्यन्त सौष्ठव सर्जनात्मक गद्य की अनेक छवियाँ
हैं।
इन कहानियों में नैरेटर यथार्थ को आत्मगत ढंग से नहीं, वस्तुगत तरीक़े से पेश करता है। यह कथाकार की सर्जनात्मक अन्तर्निष्ठा है जो कहानियों के पाठ की प्रक्रिया में सहज ही महसूस की जा सकती है।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2014 |
Edition Year | 2014, Ed. 1st |
Pages | 144p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |