अनुराधा भी चाहती थी सुख-शान्ति का जीवन। लेकिन घर का माहौल इतना दूषित था कि वहाँ एक पल गुज़ारना नरक में जीने जैसा था। पिता जहाँ घर की नौकरानी की ‘सेवा’ का आकांक्षी थे, तो वहीं पिता द्वारा तिरस्कृत माँ दुनिया-जहान से दूर अपने पूजा-पाठ में लीन और दोनों भाइयों की उच्छृंखलता सीमाओं का अतिक्रमण करने को उद्धत। 
ऐसे में अनुराधा चली आती है देवल, और वहीं एक कॉलेज के हॉस्टल में रहकर शिक्षा ग्रहण करने लगती है। वहीं एक सहेली के माध्यम से उसकी भेंट एक राजनेता से होती है। नेता उसके जीवन में क्या आता है, उसकी जीवनधारा ही बदलकर रह जाती है। और फिर रह जाती है वह लुटी-पिटी, ठगी-सी।
जगदीश प्रसाद सिंह का एक विचारोत्तेजक उपन्यास है—गोधूलि। लेखक ने अपने इस उपन्यास के माध्यम से महिलाओं के उत्पीड़न के साथ जहाँ सामाजिक ताने-बाने की टूटन को उजागर किया है, वहीं कालाबाज़ारियों, भ्रष्टाचारियों, अपराधियों, आतंकवादियों को प्रश्रय देनेवाले तथाकथित नेताओं की कारगुजारियों पर भी रोशनी डाली है कि किस तरह वे अपनी कुत्सित भावनाओं को तरजीह देने के पीछे देश तक को बेच देने पर उतारू हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 128p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Author: Jagdish Prasad Singh

जगदीश प्रसाद सिंह

क़रीब चार दशकों तक अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य के प्राध्यापक रहने के बाद कुछ वर्ष पहले सेवानिवृत्त हुए। अपने सेवा-काल के अन्तिम तेरह वर्षों तक ये मगध विश्वविद्यालय, बोधगया (बिहार) के अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष रहे।

अंग्रेज़ी में इनकी तीन आलोचनात्मक पुस्तकें और तीन उपन्यास प्रकाशित हैं। हिन्दी में इनके चार उपन्यास और तीन कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं।

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