‘गंगा-स्नान’ डॉ. जगदीश प्रसाद सिंह की महत्‍त्‍वपूर्ण पुस्तक है जिसमें उनकी बाईस कहानियाँ संकलित हैं।

संग्रह की सभी कहानियाँ यथार्थवादी परम्परा की हैं और प्रत्येक कहानी में कुछ ऐसे प्रश्न उठाए गए हैं जिनका सम्बन्ध व्यक्ति या समाज या दोनों के वर्तमान और भविष्य से है। लेकिन इनमें प्रश्नों के उत्तर देने का या भविष्य के लिए दिशा-संकेत करने का कोई प्रयास नहीं है। इनका संसार वैश्वीकरण के युग में तेज़ी से बदलते मूल्यों का संसार है, जहाँ उचित और अनुचित के निर्णय का सर्वमान्य मापदंड स्वार्थों की पूर्ति है। ये कहानियाँ पाठक के मस्तिष्क को झकझोरने और इनमें उठे प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए विवश करने का काम करती हैं।

लेखक ने इन कहानियों के माध्यम से मानव-मन की विभिन्न छवियों का जो कोलाज रचा है, वह अनूठा है। शीर्षक कथा ‘गंगा-स्नान’ में एक शहीद की विधवा पत्नी के दु:ख-दर्द और अपने ही परिवार में हो रहे शोषण की मर्मस्पर्शी कथा कही गई है। इस पुस्तक में जातिवाद साम्प्रदायिकता, राजनीतिक विद्रूपता, सामाजिक न्याय, शोषण आदि विषयों के सहारे कहानियों का ताना-बाना बुना गया है।

संग्रह की सभी कहानियाँ रोचक हैं और पाठक का ध्यान अन्त तक बाँधे रहती हैं।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2006, Ed. 1st
Pages 168p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Author: Jagdish Prasad Singh

जगदीश प्रसाद सिंह

क़रीब चार दशकों तक अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य के प्राध्यापक रहने के बाद कुछ वर्ष पहले सेवानिवृत्त हुए। अपने सेवा-काल के अन्तिम तेरह वर्षों तक ये मगध विश्वविद्यालय, बोधगया (बिहार) के अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष रहे।

अंग्रेज़ी में इनकी तीन आलोचनात्मक पुस्तकें और तीन उपन्यास प्रकाशित हैं। हिन्दी में इनके चार उपन्यास और तीन कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं।

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