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Ghabaraye Hue Shabda-Hard Cover

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9788126717903
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समकालीन हिन्दी कविता में अब एक काव्य-शैली का ही नाम है—लीलाधर जगूड़ी। जगूड़ी की इन कविताओं का सम्पर्क जताता है कि यथार्थ मनुष्य से भी प्राचीन है और कवि उसे हर बार अपने समय और स्थान की चेतना में सही दूरी रखकर अनावृत्त करता है। अपने ज़माने की संचार-भाषा को संकल्प से जोड़ने के बावजूद ये कविताएँ ‘बताती’ कम और ‘पूछती’ ज़्यादा हैं।

इन कविताओं में वैयक्तिक संवेदना ने भाषा को सांस्कृतिक चेतना के अधिक योग्य बनाया है। मानवकृत सभ्यता और इतिहास के बीच की बातचीत के लिए आदमी ही इन कविताओं का मुख्य आधार है। वही आदमी एक ‘सम्पूर्ण आदमी’ बन सकने के लिए तरह-तरह से अपनी सामुदायिक पहचान बनाता चलता है जो गाहे-बगाहे नियति के निरीह प्रसंग में अविश्वसनीय और अकेला दिखता है।

परिवेश ही जगूड़ी की इन कविताओं का मुख्य पात्र है। प्रत्येक स्थल पर यह महसूस होता रहता है कि हिंसा और युद्ध के बीच मानवीय श्रम के कई दूसरे रूप भी हैं जो उतनी ही तत्परता से भाषा का निर्माण करते हैं जितनी तत्परता से विचार व सौन्दर्य का। इन कविताओं में प्रवेश पाते ही हम अपने सामाजिक जीवन के एक-न-एक गहरे प्रसंग से जुड़ जाते हैं। समकालीन कविता में एक साथ कई स्तरों पर भाषा का ऐसा विकास दुर्लभ है।

 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 1981
Edition Year 2024, Ed. 5th
Pages 83p
Price ₹395.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Leeladhar Jagudi

Author: Leeladhar Jagudi

लीलाधर जगूड़ी

जन्म : 1 जुलाई, 1940; धंगण गाँव (सेम मुखेम), टिहरी (उत्तराखंड)। राजस्थान और उत्तर प्रदेश के अलावा अनेक प्रान्तों और शहरों में कई प्रकार की जीविकाएँ करते हुए शालाग्रस्त शिक्षा के अनियमित क्रम के बाद हिन्दी साहित्य में एम.ए.। फ़ौज (गढ़वाल राइफ़ल) में सिपाही। लिखने-पढ़ने की उत्कट चाह के कारण तत्कालीन रक्षामंत्री कृष्ण मेनन को प्रार्थना-पत्र भेजा, फलत: फ़ौज की नौकरी से छुटकारा। छब्बीसवें वर्ष में पूरी तरह घर वापसी और परिवार की ख़राब आर्थिक स्थिति के कारण सरकारी जूनियर हाईस्कूल में शिक्षक की नौकरी। बाद में पब्लिक सर्विस कमीशन, उत्तर प्रदेश से चयनोपरान्त उत्तर प्रदेश की सूचना सेवा में उच्च अधिकारी और पहाड़ से बीस वर्ष का स्वैच्छिक निर्वासन।

सेवानिवृत्ति के बाद नए राज्य उत्तराखंड में सूचना सलाहकार, ‘उत्तरांचल दर्शन’ के प्रथम सम्पादक तथा उत्तराखंड के संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद के प्रथम उपाध्यक्ष रहे।

जगूड़ी ने 1960 के बाद की हिन्दी कविता को एक नई पहचान दी है। ‘जितने लोग उतने प्रेम’ इक्कीसवीं सदी की नई काव्य-भाषा का प्रतिफल है।

प्रकाशित कृति‍याँ : ‘शंखमुखी शिखरों पर’, ‘नाटक जारी है’, ‘इस यात्रा में’, ‘रात अब भी मौजूद है’, ‘बची हुई पृथ्वी’, ‘घबराए हुए शब्द’, ‘भय भी शक्ति देता है’, ‘अनुभव के आकाश में चाँद’, ‘महाकाव्य के बिना’, ‘ईश्वर की अध्यक्षता में’, ‘ख़बर का मुँह विज्ञापन से ढका है’, ‘जि‍तने लोग, उतने प्रेम’  और ‘कविता का अमरफल’ (कविता-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार’, ‘प्रश्न व्यूह में प्रज्ञा’ (साक्षात्कार)।

प्रौढ़ शिक्षा के लिए ‘हमारे आखर’ तथा ‘कहानी के आखर’ का लेखन। ‘उत्तर प्रदेश’ मासिक और राजस्थान के शिक्षक-कवियों के कविता-संग्रह ‘लगभग जीवन’ का सम्पादन। अनेक देशी और विदेशी भाषाओं में कविताओं के अनुवाद।

सम्मान : ‘जि‍तने लोग उतने प्रेम’ को व्यास सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कार; पद्मश्री सम्मान; रघुवीर सहाय सम्मान; भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता का सम्मान; उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का नामित पुरस्कार; साहित्य अकादेमी की फ़ेलोशिप ‘प्वेट एट रेजिडेन्स’ के अन्तर्गत वर्तमान संग्रह का संयोजन।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

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