Gali Aage Murti Hai

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Gali Aage Murti Hai
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‘गली आगे मुड़ती है’ उपन्यास ‘अलग-अलग वैतरणी’ के लेखक के निजी जीवन का मोड़ था। शिवप्रसाद सिंह 1974 तक ‘ग्राम कथा’ और ‘वैतरणी’ जैसे विख्यात उपन्यासों के लेखक के रूप में अपना एक अलग स्थान बना चुके थे। वे पुराने लोकेशन (परिवेश) को कभी दुहराते नहीं। इसलिए ‘गली’ में वे काशी जैसे विरले नगर की अनेकानेक छवियों को जो काली हैं, धूसरित हैं, पंकिल हैं, उकेरना चाहते थे; पर इसी के बीच एक ऐसी भी काशी है, जिसे ग़ालिब ने कभी ‘अध्यात्म का चिराग’ कहा था, जो इस डबरे-भर परिवेश में निरन्तर प्रतिच्छायित होता रहता है। यही वह मोड़ था, जिसने लेखक को लॉरेंस ड्यूरल के ‘ऑलक्जांद्रिया क्वार्टरेट’ की तरह ‘काशी त्रयी’ लिखने की चुनौती दी। लॉरेंस तो इतिहास के दस्तावेज़ों और खँडहरों में भटककर विस्मृत हो गया, किन्तु काशी का मध्यकालीन इतिहास ‘नीला चाँद’ (काशी-2) में ऐसा निखरा कि इसे विद्वानों ने एक स्वर में अभूतपूर्व, नितान्त अनछुए विषयों से अनुप्राणित बताकर भूरि-भूरि प्रशंसा की।

शिवप्रसाद सिंह का कहना है कि ‘वैतरणी’ में सम्बोध्य राष्ट्र कृषक और कृषक पुत्र थे। ‘गली’ में सम्बोध्य सम्पूर्ण राष्ट्र का युवा वर्ग है। युवा वर्ग के क्रोध और क्षोभ का विस्फोट ‘गली’ में निरन्तर गूँजता रहता है।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2018, Ed. 8th
Pages 361p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Shivprasad Singh

Author: Shivprasad Singh

शिवप्रसाद सिंह

 

19 अगस्त, 1928 को जलालपुर, जमानिया बनारस में पैदा हुए शिवप्रसाद सिंह ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1953 में हिन्दी में एम.ए. किया। 1957 में पीएच.डी. करने के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक नियुक्त हुए।

शिवप्रसाद सिंह प्रख्यात शिक्षाविद् तो थे ही, साहित्य के भी शिखर पुरुष रहे हैं। ‘नयी कहानी’ आन्दोलन के स्तम्‍भ शिवप्रसाद जी प्राचीन और समकालीन साहित्य से गहरे संपर्क में रहे हैं। कुछ समालोचक उनकी कथा-रचना ‘दादी माँ’ को पहली ‘नयी कहानी’ मानते हैं।

प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास—‘अलग-अलग वैतरणी’, ‘नीला चाँद’, ‘मंजुशिमा’, ‘शैलूष’; कहानी-संग्रह—‘अंधकूप’ (सम्पूर्ण कहानियाँ, भाग-1), ‘एक यात्रा सतह के नीचे’ (सम्पूर्ण कहानियाँ, भाग-2); आलोचना—‘कीर्तिलता और अवहट्ठ भाषा’, ‘आधुनिक परिवेश और नवलेखन’, ‘आधुनिक परिवेश और अस्तित्ववाद’; निबन्ध-संग्रह—‘मानसी गंगा’, ‘किस-किसको नमन करूँ’, ‘क्या कहूँ कुछ कहा न जाए’; जीवनी—‘उत्तरयोगी’ (महर्षि अरविन्द)।

निधन : 28 सितम्बर, 1998

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