Europ Mein Antaryatrayen

As low as ₹590.75 Regular Price ₹695.00
You Save 15%
In stock
Only %1 left
SKU
Europ Mein Antaryatrayen
- +

हम जो हैं वह हमारे ध्यान में नहीं रहता। हमें जैसा होना चाहिए इसी पर सब टिक गया है। जीवन जो है वह नहीं, उसे जैसा होना चाहिए। यानी 'कैसा होना चाहिए' में हमारी एकमात्र दिलचस्पी रह गई है। इसलिए सब कुछ वांछित और हवाई हो गया है। वास्तव कुछ नहीं रह गया। वास्तविकता से अधिक स्वप्न, भविष्य, जीवनेतर महत्त्वपूर्ण हो गया है। वह एक तरफ शरीर से अधिक आत्मा के सरोकारों, इहलोक से अधिक परलोक की चिन्ताओं के फलते-फूलते आध्यात्मिक भ्रष्टाचार में व्यक्त हो रहा है। दूसरी तरफ किसी भावी आदर्श समाज की स्थापना के वादों, स्वप्न के भ्रमजाल के सिद्धान्तों में। ये सब शक्ति के खेल में शामिल गतिविधियाँ हैं जो अब की वास्तविकता को झुठलाती हैं। यात्राएँ इस वास्तविकता के बीच ही होती हैं और वह जैसी भी हैं, उसका उसी रूप में साक्षात्कार करती हैं। 
यात्राएँ की जा सकती हैं, उन्हें लिखना एक इतर काम है। जिस दिन मनुष्य जीवन से एकमेक हो जाएगा शायद उस दिन कुछ कहने की आवश्यकता महसूस न करे। लिखने के लिए एक तरह की 'इन्नोसेंस' चाहिए, दुनियादारी के नाम पर पसरे विचारों में आस्था चाहिए, कुछ होने की भ्रान्ति का सहारा चाहिए। लिखा तभी जा सकता है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 200p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 15 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Europ Mein Antaryatrayen
Your Rating

Author: Karan Singh Chauhan

कर्ण सिंह चौहान

प्रारम्भिक शिक्षा दिल्ली के विभिन्न स्कूलों में। उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से। दिल्ली विश्वविद्यालय से ही एम.लिट. और बाद में पी-एच. डी.। इसी विश्वविद्यालय में प्राध्यापन। बीच में लगभग सात वर्षों तक सोफिया विश्वविद्यालय, बल्गारिया तथा हांगुक यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज, सिओल, कोरिया के भारतविद्या विभागों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में अध्यापन। यहाँ काम करते हुए  अनेक विश्वविद्यालयों में भारतीय साहित्य और दर्शन पर अभिभाषण। ‘आलोचना के नए मान’, ‘साहित्य के बुनियादी सरोकार’, ‘प्रगतिवादी आंदोलन का इतिहास’ जैसी आलोचनात्मक पुस्तकें यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों के यात्रा-वृत्तान्त, समीक्षक की डायरी, कविता, कहानी संकलनों के साथ ही लगभग एक दर्जन अनुवाद प्रकाशित। शताधिक शोधलेख कई देशों की विभिन्न भाषाओं की पत्रिकाओं में प्रकाशित।

Read More
Books by this Author
Back to Top