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Ek Kanth Vishpai

Author: Dushyant Kumar
Edition: 2016, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Ek Kanth Vishpai

शिव-सती प्रसंग को आधार बनाकर लिखी गई इस काव्य-नाटिका में दुष्यन्त कुमार ने बड़ी बेबाकी से कई ऐसे प्रसंगों को उठाया है जो हमारे समय में प्रासंगिक हैं। देवताओं में शिव ऐसे मिथक हैं जो औरों से बिलकुल अलग आभावाले हैं। इस शिव की ख़ासियत यही है कि अगर इनका तीसरा नेत्र खुल गया तो फिर दुनिया को ख़ाक होते देर नहीं लगेगी। सभी प्रार्थना करते हैं कि यह नेत्र यूँ ही बन्द रहे। क्या यह शिव उस आम आदमी की शक्ति का पर्याय नहीं जिसके जगने पर सत्ताधीशों को ज़मींदो़ज़ होते देर नहीं लगती। ये सत्ताधीश अपनी भलाई इसी में समझते हैं कि शिव अपना नेत्र बन्द रखें। अर्थात् जनता अपनी शक्ति अपने सामर्थ्य को भूली रहे। वह सोयी ही रहे, किसी भी क़ीमत पर जगने न पाए। यह शिव जो कि एक जन-प्रतीक है, दुनिया भर के विष को अपने कण्ठ में समाहित किए हुए है। चार अंकों में फैला काव्य-नाट्य ‘एक कण्ठ विषपायी’ का वितान कुछ ऐसा ही है।

काव्य-नाटिका ‘एक कण्ठ विषपायी’ में एक पात्र है ‘सर्वहत’ जो अनायास ही उभरकर आधुनिक प्रजा का प्रतीक बन गया। दरअसल यह सर्वहत उस सर्वहारा वर्ग का ही प्रतिनिधि है जो हर जगह उपेक्षित रहता है। एक जगह यह सर्वहत कहता है—‘मैं सुनता हूँ...मैं सब कुछ सुनता हूँ, सुनता ही रहता हूँ, देख नहीं सकता हूँ, सोच नहीं सकता हूँ और सोचना मेरा काम नहीं है। उससे मुझे लाभ क्या मुझको तो आदेश चाहिए। मैं तो शासक नहीं प्रजा हूँ। मात्र भृत्य हूँ केवल सुनना मेरा स्वभाव है।’ क्या आज भी जनता की यही स्थिति नहीं है? वह मूकद्रष्टा की भूमिका में होती है। जनता के सेवक के नाम पर शासन करनेवाले नेता और नौकरशाह अपने को अधिनायक समझने लगते हैं। लोकतंत्र भी आज महज़ एक मज़ाक़ बनकर रह गया है। वंशवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद से आज सभी दल आप्लावित हैं। एक जगह सर्वहत कहता भी है—‘शासन के ग़लत-सलत झोंकों के आगे भी फ़सलों-से विनयी हम बिछे रहे। निर्विवाद हमारे व्यक्तित्व के लहलहाते हुए खेतों से होकर दक्ष ने बहुत-सी पगडंडियाँ बनाईं, कर दीं सब फ़सलें बर्बाद।’

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2013
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 132p
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Dushyant Kumar

Author: Dushyant Kumar

दुष्यन्त कुमार

जन्म : 1 सितम्बर, 1933; राजपुर-नवादा, ज़िला—बिजनौर (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), इलाहाबाद।

प्रकाशित कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘सूर्य  का  स्वागत’, ‘जलते हुए वन का वसन्त’, ‘आवाज़ों के घेरे’; उपन्यास : ‘छोटे-छोटे सवाल’, ‘दुहरी ज़िन्दगी’ और ‘आँगन में एक वृक्ष’; नाटक—‘मसीहा मर गया’, ‘मन के कोण’ (एकांकी); नाट्य-काव्य—‘एक कण्ठ विषपायी’। ‘साये में धूप’ उनका अन्तिम तथा अत्यन्त चर्चित ग़ज़ल-संग्रह है।

इसके अलावा कुछ आलोचनात्मक पुस्तकें, कुछ उपन्यास (जिन्हें ख़ुद दुष्यन्त कुमार 'फ़ालतू’ कहते थे) लिखे तथा कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के अनुवाद भी किए।

निधन : 30 दिसम्बर, 1975; भोपाल (म.प्र.)।

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