Ek Achambha Prem

कुसुम खेमानी की ये कहानियाँ एकबारगी हमें उस संसार में ले जाती हैं, जिससे अब तक हमारा सामना प्राय: नहीं हुआ था। यहाँ आदिम और चिर-परिचित प्रेम अपने अचम्भेपन के साथ मौजूद है। ये कहानियाँ निर्वासितों के निर्वासन का प्रश्न उठाती हैं और प्रतिशोध को भी हिंसक के बजाय ‘सुन्दर’ रूप में प्रस्तुत करती हैं। दरअसल, यह कथाकार का निज अन्तस है, जो करुणा, प्रेम और सौन्दर्य से आपूरित है, और ‘उड़ान पिंजरे के परिन्दे की‘ की ‘मिसेज बाजोरिया’ जैसे चरित्रों में जब-तब प्रकट होता रहता है। वे सहसा 'घोंघा’ का प्रतीक उठाती हैं और दलितों-वंचितों के पक्ष में ‘घोंघा प्रसाद’ जैसी कहानियाँ लिखकर हमें चकित और हमारे चिर-परिचित कथा-आस्वाद में हस्तक्षेप कर देती हैं।
कुसुम खेमानी यथार्थ का तिरस्कार नहीं करतीं, पर उनकी कहानियाँ रचनात्मक अतिक्रम करती हुईं हमें आदर्श लोक में ले जाती हैं, जो शुरू में तो असम्भव लगता है, पर जल्द ही यह तथ्य दरवाज़े की तरह खुलने लगता है कि यह एक तरह की उस महाख्यान को जगाने की ज़िद है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसका अन्त हो चुका है, पर साहित्य का काम ही यह है कि वह उसे कल्पना में बचाए रखे, क्योंकि मानव जीवन के आदर्श और उच्चतर मूल्य यदि साहित्य में नहीं रचे-सहेजे जाएँगे, तो इनके लिए कौन सी जगह बची रहेगी। जो लोग साहित्य को विविध विधाओं में देखने के आदी हैं, उनके लिए कुसुम खेमानी की ये कहानियाँ एक बड़ी चुनौती की तरह हैं। इनकी प्रत्येक कहानी का अपना एक व्यक्तित्व है। यह एक बहुत ही महीन मिक्सर है, जो अनुभव, कल्पना, इतिहास, वर्तमान, श्रेष्ठता, नीचता आदि मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को फेंटकर अनूठी चीज़ें पैदा कर देता है।
कुसुम जी का रचना क्षेत्र बहुआयामी है; और यही वजह है कि यहाँ वेद-पुराण के लिए भी जगह है और आधुनिक से आधुनिक विचार के लिए भी। यह एक नई आस्तिकता है, जो मनुष्य को ईश्वर से नहीं, मनुष्यता से जोड़ती है। भाषा संवाद का माध्यम है और संवाद जितना सीधा, सरल, पारदर्शी और आत्मीय हो उतना ही अच्छा है। यही कारण है कि कुसुम खेमानी की कहानियों में राजस्थानी, हरियाणवी, बांग्ला, अंग्रेज़ी, उर्दू, भोजपुरी और संस्कृत आदि भाषाओं के शब्द हिन्दी को बोलचाल की एक नई अर्थवत्ता और भंगिमा प्रदान करते हुए नदी की रवानगी की तरह बहते रहते हैं। इस भाषा में बतरस के बताशे-सी मिठास है, जो निस्सन्देह कथाकार की एक बड़ी उपलब्धि है।
Language | Hindi |
---|---|
Format | Hard Back |
Publication Year | 2015 |
Edition Year | 2015, Ed. 1st |
Pages | 128p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |
It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here