Dekhani

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इस संग्रह में एक वरदान माँगा गया है—‘ज़ि‍न्दगी का रमणीय सतरंगी बुलबुला व्यर्थ न हो, कि दरख़्तों से झाँकता रोशन सूर्य अस्त न हो, विनाश तत्त्व के झपट्टे में भी भूमि की उग्रगन्धी धूल गमकती रहे और जीने का समृद्ध कबाड़ पूरे घर-भर में जमा होता रहे।’ इन सभी सचेतन बिम्बों में जिजीविषा का स्रोत उफन-उफनकर बहता है।

यह प्रवृत्ति महानगरीय कविता की मृत्युग्रस्त प्रवृत्ति पर चोट है। मृत्यु के प्रति एक सचेत एहसास के कारण जीवन के प्रति इसकी निष्ठा खोखली नहीं है, उसमें एक दृढ़ता है। इस तरह हमेशा अच्छी ज़ि‍न्दगी पर मृत्यु का अंकुश तना होता है। इसलिए नेमाड़े जी की कविता मृत्यु के एहसास से ध्वनित विनाश तत्त्व को अनदेखा कर कोरे आशावाद की तरफ़ नहीं झुकती। वह महानगरीय कविता की तरह मृत्यु की प्रभुसत्ता को तटस्थता से स्वीकार नहीं करती, बल्कि इस प्रभुसत्ता को चुनौती देनेवाले जीवनदायी प्रेरणाओं के सन्‍दर्भ म़जबूती से खड़ी करती है। इस विनाश तत्त्व को मात देता जीवन के प्रति अदम्य उत्साह और उससे स्वभावत: प्राप्त जुझारूपन नेमाड़े जी का स्थायी भाव है। उनकी इसी विलक्षण जीवन-दृष्टि का दर्शन उनकी कविताओं में भी होता है।

—प्रकाश देशपांडे केजकर

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 80
Translator Gorakh Thorath
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Editorial Review

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Bhalchandra Nemade

Author: Bhalchandra Nemade

भालचन्द्र नेमाड़े

महाराष्ट्र के सांगवी, ज़ि‍ला—जलगाँव में 27 मई, 1938 को जन्म।

पुणे तथा मुम्‍बई विश्वविद्यालयों से एम.ए. और औरंगाबाद विश्वविद्यालय से पीएच.डी.। औरंगाबाद, लंदन, गोआ तथा मुम्‍बई विश्वविद्यालयों में अध्यापन। मुम्‍बई विश्वविद्यालय के गुरुदेव टैगोर चेयर ऑफ़ कम्पॅरेटिव लिटरेचर में प्रोफ़ेसर तथा विभाग प्रमुख। सन् 1998 में अवकाश प्राप्त।

प्रमुख कृतियाँ : उपन्यास—‘कोसला’, ‘बिढ़ार’, ‘हूल’, ‘जरीला’  तथा ‘झूल’; काव्य—‘मेलडी’ तथा ‘देखणी’; आलोचना—‘साहित्याची भाषा’, ‘टीका स्वयंवर’, ‘साहित्य संस्कृति आणि जागतिकीकरण’, ‘Tukaram’ (साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित); ‘The influence of English on Marathi’; ‘Indo-Anglian Writings’; ‘Frantz Kafka : A Country Doctor’; ‘Nativism : Deshivad’। अनेक भाषाओं में रचनाओं के अनुवाद।

सम्मान एवं पुरस्कार : ‘बिढ़ार’  (उपन्यास)—महाराष्ट्र साहित्य परिषद का ‘ह.ना. आपटे पुरस्कार’; ‘झूल’  (उपन्यास)—‘यशवंतराव चव्हाण पुरस्कार’; ‘साहित्याची भाषा’ (आलोचना)—‘कुरुंदकर पुरस्कार’; ‘टीका स्वयंवर’ (आलोचना)—‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’; ‘देखणी’ (कविता-संग्रह)—‘कुसुमाग्रज पुरस्कार’; समग्र साहित्यिक उपलब्धियों के लिए महाराष्ट्र फ़ाउंडेशन का ‘गौरव पुरस्कार’; शिक्षा एवं साहित्यिक योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री सम्मान’; ‘कुसुमाग्रज जनस्थान पुरस्कार’; ‘एन.टी. रामाराव नेशनल लिटरेरी अवार्ड’; ‘बसवराज कट्टिमणि नेशनल अवार्ड’, ‘महात्मा फुले समता पुरस्कार’; समग्र कृतित्व के लिए 50वाँ ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’।

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