Chidambara

Edition: 2024, Ed 16th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Chidambara
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‘चिदंबरा’ मेरी काव्यचेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायिका है। उसमें ‘युगवाणी’  से लेकर ‘अतिमा’ तक की रचनाओं का संचयन है—सन् ’37 से ’57 तक प्राय: बीस वर्षों की विकास-श्रेणी का विस्तार।

‘चिदंबरा’ की पृथु-आकृति में मेरी भौतिक, सामाजिक, मानसिक, आध्यात्मिक संचरणों से प्रेरित कृतियों को एक स्थान पर एकत्रित देखकर पाठकों को उनके भीतर व्याप्त एकता के सूत्रों को समझने में अधिक सहायता मिल सकेगी। इनमें मैंने अपनी सीमाओं के भीतर, अपने युग के बहिरन्तर के जीवन तथा चैतन्य को, नवीन मानवता की कल्पना से मंडित कर, वाणी देने का प्रयत्न किया है। मेरी दृष्टि में ‘युगवाणी’ से लेकर ‘वाणी’ तक मेरी काव्य-चेतना का एक ही संचरण है, जिसके भीतर भौतिक और आध्यात्मिक चरणों की सार्थकता, द्विपद मानव की प्रकृति के लिए, सदैव ही अनिवार्य रूप से रहेगी।

‘‘पाठक देखेंगे कि (इन रचनाओं में) मैंने भौतिक-आध्यात्मिक, दोनों दर्शनों से जीवनोपयोगी तत्त्वों को लेकर, जड़-चेतना सम्बन्धी एकांगी दृष्टिकोण का परित्याग कर, व्यापक सक्रिय सामंजस्य के धरातल पर, नवीन लोक-जीवन के रूप में, भरे-पूरे मनुष्यत्व अथवा मानवता का निर्माण करने का प्रयत्न किया है, जो इस युग की सर्वोपरि आवश्यकता है?’’

—भूमिका से

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1958
Edition Year 2024, Ed 16th
Pages 354p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 3
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Sumitranandan Pant

Author: Sumitranandan Pant

सुमित्रानंदन पंत

जन्म : 20 मई, 1900; कौसानी (उत्तरांचल में)।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा कौसानी के वर्नाक्यूलर स्कूल में। 1918 में कौसानी से काशी चले गए, वहीं से प्रवेशिका परीक्षा पास की।

प्रकाशित पुस्तकें : कविता-संग्रह—‘वीणा’, ‘ग्रन्थि’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘ज्योत्स्ना’, ‘युगपथ’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्णकिरण’, स्वर्णधूलि, ‘मधुज्वाल’, ‘उत्तरा’, ‘रजत-शिखर’, ‘शिल्पी’, ‘सौवर्ण’, ‘युगपुरुष’, ‘छाया’, ‘अतिमा’, ‘किरण-वीणा’, ‘वाणी’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’, ‘पौ फटने से पहले’, ‘चिदंबरा’, ‘पतझर’ (एक भाव क्रान्ति), ‘गीतहंस’, ‘लोकायतन’, ‘शंखध्वनि’, ‘शशि की तरी’, ‘समाधिता’, ‘आस्था’, ‘सत्यकाम’, ‘गीत-अगीत’, ‘संक्रान्ति’, ‘स्वच्छन्द’; कथा-साहित्य—‘हार’, ‘पाँच कहानियाँ’; आलोचना एवं अन्य गद्य-साहित्य—‘छायावाद : पुनर्मूल्यांकन’, ‘शिल्प और दर्शन’, ‘कला और संस्कृति’, ‘साठ वर्ष : एक रेखांकन’।

सम्मान : 1960 में ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, 1961 में ‘पद्मभूषण’ की उपाधि, 1965 में ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, 1969 में ‘चिदंबरा’ पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’।

28 दिसम्बर, 1977 को देहावसान।

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