Yugpath

Edition: 1998
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Yugpath

युगपथ पंत जी की कविताओं का ऐतिहासिक संग्रह इस अर्थ में है कि यह उनकी प्रतिमा के युगान्तरकारी मोड़ को रेखांकित करता है। कल्पना-पंखों पर व्योम में विचरना छोड़कर वह इसमें धरती पर आ उतरते हैं। इसलिए यहाँ ‘पल्लव’ जैसी ‘कोमलकान्त कला’ नहीं, बल्कि ‘एक नवीन क्षेत्र के अपनाने का प्रयास’ है, युग-धर्म के अनुरूप चलने का भाव है। इसी में कवि पहले-पहल पुरातन के प्रति रोष जताते और नूतन का आह्वान करते दिखाई पड़ते हैं।

‘युगपथ’ की कविताएँ दो खंडों में विभक्त हैं : ‘युगान्त’ और ‘युगान्तर’। प्रथम खंड की कविताओं में कवि ने जीवन से जुड़ी प्रकृति के गीत गाए हैं और अपनी धरती के प्रति असीम आसक्ति दिखाई है। दूसरा खंड महत्त्वपूर्ण सामयिक सन्दर्भों से सम्बद्ध है। बापू के प्रति कवि की भाव-भीनी श्रद्धांजलि तथा कवीन्द्र रवीन्द्र और अरविन्द के प्रति भावोद्‌गार इसी खंड में हैं।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Edition Year 1998
Pages 106p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21 X 14 X 1.5
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Sumitranandan Pant

Author: Sumitranandan Pant

सुमित्रानंदन पंत

जन्म : 20 मई, 1900; कौसानी (उत्तरांचल में)।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा कौसानी के वर्नाक्यूलर स्कूल में। 1918 में कौसानी से काशी चले गए, वहीं से प्रवेशिका परीक्षा पास की।

प्रकाशित पुस्तकें : कविता-संग्रह—‘वीणा’, ‘ग्रन्थि’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘ज्योत्स्ना’, ‘युगपथ’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्णकिरण’, स्वर्णधूलि, ‘मधुज्वाल’, ‘उत्तरा’, ‘रजत-शिखर’, ‘शिल्पी’, ‘सौवर्ण’, ‘युगपुरुष’, ‘छाया’, ‘अतिमा’, ‘किरण-वीणा’, ‘वाणी’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’, ‘पौ फटने से पहले’, ‘चिदंबरा’, ‘पतझर’ (एक भाव क्रान्ति), ‘गीतहंस’, ‘लोकायतन’, ‘शंखध्वनि’, ‘शशि की तरी’, ‘समाधिता’, ‘आस्था’, ‘सत्यकाम’, ‘गीत-अगीत’, ‘संक्रान्ति’, ‘स्वच्छन्द’; कथा-साहित्य—‘हार’, ‘पाँच कहानियाँ’; आलोचना एवं अन्य गद्य-साहित्य—‘छायावाद : पुनर्मूल्यांकन’, ‘शिल्प और दर्शन’, ‘कला और संस्कृति’, ‘साठ वर्ष : एक रेखांकन’।

सम्मान : 1960 में ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, 1961 में ‘पद्मभूषण’ की उपाधि, 1965 में ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, 1969 में ‘चिदंबरा’ पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’।

28 दिसम्बर, 1977 को देहावसान।

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