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Bina Muradonwala Diya-Paper Back

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‘बिना मुरादों वाला दीया’ रेखा झा का लघु उपन्यास है जिसमें समस्तीपुर जिले के पूसा के साथ उन्होंने अपने बचपन के उन दिनों को याद किया है जिन्हें हम सब अपने जीवन में हमेशा अपनी यादों में जीते रहते हैं।

छुम छुम बस में छुम-छुम ड्रेस पहनकर मुन्नी का पूसा जाना, वहाँ अपनी झुंड-भर मासियों की नन्ही बिल्ली बन जाना, और उनके साथ उस बड़ी दुनिया से परिचित होना जो उसके लिए अभी बिलकुल नई है। उसे बताया जाता है कि ‘मजार भी एक तरह का मन्दिर ही होता है। जिस तरह मन्दिर में भगवान होते हैं, मजार में पीर बाबा होते हैं।’

सिर्फ यही नहीं, पूसा में आम और लीची के बाग भी हैं जहाँ इतने किस्म के आम और इतनी किस्म की लीचियां हैं कि मुन्नी को स्कूल जाना भी नहीं अखरता। और फिर गुल्लू मासी तो हैं ही!

एक मीठे बचपन की यह मीठी कहानी एक रौ में अपने-आप‌को पढ़‌वा लेती है; जिस माधुर्य और जीवन्तता के बारे में यह उपन्यासिका बताती है, वह मिठास और जीवन इसकी अपनी बुनावट का भी हिस्सा है।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 96p
Price ₹199.00
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Rekha Jha

Author: Rekha Jha

रेखा झा

रेखा झा का जन्म 2 फरवरी, 1968 को हुआ। उन्होंने गृह विज्ञान में स्नातकोत्तर किया है। अध्ययन और बागवानी में उनकी विशेष रुचि है।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

सम्पर्क : 45, श्रीकृष्णपुरी, डाकघर के सामने, पटना-800 001 (बिहार

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