हिन्दी कथा-साहित्य में भीष्म साहनी का नाम प्रतिमान के रूप में स्थापित हो चुका है। प्रतिमान बन जाने तक की उनकी कथा-यात्रा अनेक पड़ावों व संघर्षों से होकर गुज़री है। उनके कथा-साहित्य में रुचि रखनेवाले पाठक अच्छी तरह परिचित हैं कि उनके पास एक विशिष्ट जीवन-दृष्टि है। अपनी इसी जीवन-दृष्टि के माध्यम से वे सामाजिक यथार्थ के जटिल स्तरों को बहुत ही कलात्मक ढंग से खोलते हैं। उनकी कला गहरे अर्थों में मानवीय सम्बन्धों की त्रासदी और उनके भविष्य से अभिन्न रूप से जुड़ी है।
‘भटकती राख’ भीष्म जी का बहुचर्चित कहानी-संग्रह है। इस संग्रह की कहानियों में उन्होंने वर्तमान जगत की समस्याओं को अतीत के परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने की कोशिश की है, इसीलिए ये कहानियाँ काल के किसी द्वीप पर ठहरती नहीं, वरन् निरन्तर प्रवाहित इतिहास-धारा का जीवन्त हिस्सा बन जाती हैं। मनुष्य के इतिहास में उनकी यह रुचि किसी आनन्द-लोक की सृष्टि नहीं करती, बल्कि अभावों व शोषण के अन्धकार में भटकते लोगों से हमारा आत्मीय साक्षात्कार कराती है। ‘यादें’ और ‘गीता सहस्सर नाम’ में बूढ़ी महिलाओं की दयनीय हालत को बहुत ही मार्मिकता के साथ अंकित किया है, तो ‘अपने-अपने बच्चे’ में सामाजिक विषमता से उत्पन्न मानवीय संकट का यथार्थपरक अंकन हुआ है। ‘भटकती राख’ की बुढ़िया मानवीय संघर्षों की जीती-जागती दास्तान है, जिसकी स्मृतियों के गर्भ में हमारा भविष्य रूपायित हो उठा है। लगातार अमानवीय होती जा रही सामाजिक परिस्थितियों के ख़िलाफ़ केवल क्षोभ और ग़ुस्सा प्रकट करने तक सीमित न रहकर ये कहानियाँ नये समाज का स्वप्न भी सँजोती हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1966 |
Edition Year | 2024, Ed. 8th |
Pages | 168P |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |