भीष्म साहनी के कथा-साहित्य से गुज़रना अपने समय को बेधते हुए गुज़रना है। हिन्दी के प्रगतिशील कहानीकारों में उनका स्थान बहुत ऊँचा है। यहाँ उनके सात कहानी-संग्रहों से प्राय: सभी प्रतिनिधि कहानियों को संकलित कर लिया गया है।
युग-सापेक्ष सामाजिक यथार्थ, मूल्यपरक अर्थवत्ता और रचनात्मक सादगी इन कहानियों के कुछ ऐसे पहलू हैं, जो हमारे लिए किसी भी काल्पनिक और मनोरंजक दुनिया को ग़ैर-ज़रूरी ठहराते हैं। विभिन्न जीवन-स्थितियों में पड़े इनके असंख्य पात्र आधुनिक भारतीय समाज की अनेक जटिल परतों को पाठकों पर खोलते हैं। उनकी बुराइयाँ, उनका अज्ञान और उनके हालत व्यक्तिगत नहीं, सार्वजनीन और व्यवस्थाजन्य हैं। इसके साथ ही इन कहानियों में ऐसे चरित्रों की भी कमी नहीं, जो गहन मानवीय संवेदना से भरे हुए हैं और अपने-अपने यथास्थितिवाद से उबरते हुए एक सार्थक सामाजिक बदलाव के लिए संघर्षरत शक्तियों से जुड़कर नया अर्थ ग्रहण करते हैं। वे न तो अपनी भयावह और दारुण दशा से आक्रान्त होते हैं न निराश, बल्कि अपने साथ-साथ पाठकों को भी संघर्ष की एक नई उर्जा से भर जाते हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 1988 |
Edition Year | 2019, Ed. 6th |
Pages | 172p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 19 X 12 X 1.5 |