Bhartiya Upanyas Kathasaar : Vol. 1 -2

Collected Works - Rachnawali
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Bhartiya Upanyas Kathasaar : Vol. 1 -2
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भारतीय वाङ्मय और साहित्य विविध भाषाओं में रचित, लिखित है। संस्कृत को छोड़ अन्य सभी भारतीय भाषाओं में उपन्यास विधा नई है। प्रारम्भ से अब तक प्रत्येक भाषा में सैकड़ों उपन्यास प्रकाशित हुए हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तर-काल से भारतीय समाज-कल्याण की साक्षिणी सामाजिक घटनाओं, चरित्र और समस्याओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करनेवाले इन औपन्यासिक कथानकों पर एक बार नज़र डालते ही पता चलता है कि ऊपर से विभाजित लगनेवाली भारतीय समाज-व्यवस्था के मर्म में भावात्मक बोध और 'इह पर' की अवधारणा एक ही—अविभाजित—है। इसी भावात्मक एकता को अधोरेखित करते हुए भारतीय भाषा परिषद् का यह दूसरा प्रकाशन है ‘भारतीय उपन्यास : कथासार’।

विभिन्न भारतीय भाषाओं में प्रकाशित सैकड़ों उपन्यासों में से कैसे और कितने श्रेष्ठ उपन्यासों का चुनाव किया जाए? परिषद् ने इसके निमित्त यूनेस्को के लिए अनुवाद को सुझाए गए श्रेष्ठ भारतीय उपन्यासों की तालिका, साहित्य अकादेमी तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार-प्राप्त श्रेष्ठ उपन्यास तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद के लिए चुने गए श्रेष्ठ उपन्यासों की सूचियाँ एकत्र कर प्रत्येक भाषा के कई विद्वान् आलोचक, श्रेष्ठ उपन्यासकार इत्यादि विशेषज्ञों से पत्र-व्यवहार किया और विचार-विनिमय के बाद इस कार्य के लिए सूची प्रस्तुत की। दो खंडों में प्रकाशित इस बृहद् कथानक पुनर्लेखन कार्य की पूरी पांडुलिपि दो वर्षों में संग्रह किए जाने से ही यह स्पष्ट है कि कितनी गतिशीलता के साथ इस कार्य को पूरा किया गया है।

हिन्दी ही नहीं भारतीय भाषाओं में यह पहला प्रयास है, अंग्रेज़ी में भी ऐसा कार्य नहीं हुआ है। प्रथम प्रयास होने के नाते इसमें त्रुटि-विच्युति का अनुविष्ट होना सहज ही है। परन्तु ऐसे प्रयास को यदि प्रोत्साहन मिला तो प्रत्येक भाषा के श्रेष्ठ उपन्यासों के कथासार अलग-अलग पुस्तकाकार प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिसकी आवश्यकता भी है। परवर्ती होने के कारण वे निश्चय ही इससे उन्नत और विकसित होंगे।

इन कथासारों को पढ़कर पाठकों के मन में मूल उपन्यास पढ़ने की उत्सुकता होगी; फलत: और अधिक अनुवाद हिन्दी में उपलब्ध होंगे, साहित्य का तुलनात्मक मूल्यांकन और अध्ययन की स्वस्थ प्रवृत्ति बढ़ेगी और भारत की सांस्कृतिक एकात्मकता की ओर हम सब अधिक उन्मुख होंगे।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1992
Edition Year 2014, Ed. 4th
Pages 1517p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 7.5
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Editorial Review

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Author: Prabhakar Machve

प्रभाकर माचवे

प्रभाकर माचवे का जन्म २६ दिसम्बर, १९१७ को ग्वालियर में हुआ। शिक्षा इन्दौर में एम० ए० (दर्शन), एम० ए० (अंग्रेजी साहित्य), पी० एच० डी०। इन्दौर मजदूर संघ में कार्य करते रहे तदुपरान्त माधव कालेज उज्जैन में प्राध्यापक रहे। आकाशवाणी की सेवा के सिलसिले में प्रयाग, दिल्ली, नागपुर केन्द्रों पर काम किया। नई दिल्ली में साहित्य अकादमी के सचिव रहे। माचवे का लेखन कविता, कहानी, उपन्यास निबन्ध, समीक्षा...कई विधाओं में फैला हुआ है। मराठी और अंग्रेजी में अनुवाद भी किए हैं। 'तारमातक (१९४३) के कवियोंम थे। उसके बाद दो कविता संग्रह और प्रकाशित हुए 'अनुक्षण' (१९५९) और 'मेपल (१९६६) । पहला निबन्ध-संग्रह 'खरगोशके सींग' १९५० में छपा था. दुसरा 'बेरंग' १९५५ में। समीक्षा-पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है : व्यक्ति और वाङ्मय (१९५२): समीक्षा की समीक्षा) (१९५३): 'सन्तुलन' (१९५४), हिन्दी निबन्ध (१९५५): मराठी और उसका साहित्य (१९५६). 'नाट्य-चर्चा' (१९५७), हिन्दी साहित्य की कहानी" (१९५७)। उपन्यास 'परन्तु' (१९५१), 'एक तारा ' (१९५२), 'द्वाभा' (१९५५), 'साँचा' । एक कहानी-संग्रह भी है: 'संगीनों का साया' जो १९४३ में प्रकाशित हुआ था। इसके अलावा कुछ ग्रन्थों का सम्पादन भी किया है।

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