Bharat Ka Itihas

Author: Romila Thapar
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Bharat Ka Itihas
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प्रस्तुत पुस्तक में लगभग 1000 ई.पू. में आर्य संस्कृति की स्थापना से लेकर 1526 ई. में मुग़लों के आगमन और यूरोप की व्यापारिक कम्पनियों के प्रथम साक्षात्कार तक प्रायः 2500 वर्षों के दौरान भारत के आर्थिक तथा सामाजिक ढाँचे का विकास प्रमुख राजनीतिक एवं राजवंशीय घटनाओं के प्रकाश में दर्शाया गया है। मुख्य रूप से
डॉ. थापर ने धर्म, कला और साहित्य में, विचारधाराओं और संस्थाओं में व्यक्त होनेवाले भारतीय संस्कृति के विविध रूपों का रोचक वर्णन किया है।

यह इतिहास वैदिक संस्कृति के साथ प्रारम्भ होता है, इसलिए नहीं कि यह भारतीय संस्कृति का प्रारम्भ-बिन्दु है, वरन् इसलिए कि भारतीय संस्कृति के प्रारम्भिक चरणों पर, जो आदिम-ऐतिहासिक और हड़प्पा काल में दृष्टिगोचर होने लगे थे, सामान्य पाठकों को उपलब्ध अनेक पुस्तकों में पहले ही काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है। इस प्रारम्भिक चरण का उल्लेख ‘पूर्वपीठिका’ वाले अध्याय में है। यूरोपवासियों के आगमन से भारत के इतिहास में एक नवीन युग का सूत्रपात होता है। समाप्ति के रूप में 1526 ई. इसीलिए रखी गई है।

लेखिका ने पहले अध्याय में अतीत के विषय में लिखनेवाले इतिहासकारों पर प्रमुख बौद्धिक प्रभावों को स्पष्ट करने की चेष्टा की है। इससे अनिवार्यता नवीन पद्धतियों एवं रीतियों का परिचय मिल जाता है जिन्हें इतिहास के अध्ययन में प्रयुक्त किया जा रहा है और जो इस पुस्तक में भी परिलक्षित हैं।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1975
Edition Year 2024, Ed. 35th
Pages 333p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Romila Thapar

Author: Romila Thapar

रोमिला थापर

रोमिला थापर का जन्म 1931 में एक सुप्रसिद्ध पंजाबी परिवार में हुआ और बचपन में उन्हें भारत के विभिन्न प्रान्तों में रहने का अवसर मिला, क्योंकि उनके पिता उन दिनों सेना में थे। उन्होंने अपनी पहली डिग्री पंजाब विश्वविद्यालय से ली और डॉक्टरेट 1958 में लन्दन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ ओरियंटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़ से। बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में रीडर के पद पर कार्य किया और 1968 में एक वर्ष उन्होंने लेडी मार्ग्रेट हॉल, ऑक्सफ़ोर्ड में व्यतीत किया। वे 1970 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनीं तथा सेवानिवृत्ति के बाद वहीं प्रोफ़ेसर एमेरिट्स के पद पर भी उन्होंने कार्य किया।

डॉ. थापर ने यूरोप और एशिया का व्यापक भ्रमण किया है। 1957 में वे चीन के बौद्ध गुफास्थलों का अध्ययन करने गईं और गोबी मरुभूमि में तुन-हुआंग तक यात्रा की। उनकी अन्य कृतियों में ‘अशोक एंड द डिक्लाइन ऑफ़ द मौर्याज़’ उल्लेखनीय है।

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