Beej Se Phool Tak

Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
15% Off
Out of stock
SKU
Beej Se Phool Tak

‘बीज से फूल तक’ की कविताओं में एक ख़ास तरह की कशिश है। उसे एकान्त एक जगह ‘गुरुत्वाकर्षण’ कहते हैं जब समुद्र उन्हें अपनी तरफ़ खींचता है, और अपनी तरफ़ खींचती है पृथ्वी। ‘इस खींच-तान में समुद्र की अद्‌भुत छवियाँ छिटकी हैं।’ समुद्र पर सूर्योदय में श्याम जल में झड़ते हैं इंगुरी के फूल, क्षितिज की झुकी हुई टहनी से।’ और ‘एक बहुत बड़ा हवनकुंड है भोर का समुद्र, मंत्रपुष्ट उठता है जल, हाहाकार है जल का मंत्रोच्चार।’ फिर ‘ढलती धूप की धीमी आँच में, पिघलता है शाम का समुद्र।’ लेकिन इन दोनों घड़ियों के बीच दोपहर का समुद्र तो अद्वितीय है। वह ‘हल्दी-मिला दूध है’, ‘जल का उद्विग्न वाद्य है’ और है ‘पानी का महाकाव्य, पानी की लकीरों पर लिखा हुआ, पानी का लोकगीत, पानी के कंठ से उठता हुआ।’ हिन्दी में समुद्र पर पहली बार ऐसी कविताएँ दृष्टिगत हुई हैं सम्भवत:। समुद्र को ‘पानी का महाकाव्य’ कहने का गौरव एकान्त को ही प्राप्त हुआ है। ऐसा लगता है जैसे कोई पहले-पहल समुद्र को देख रहा हो : धरती पर पहला मनुष्य और हिन्दी का पहला कवि! इस प्रसंग की सबसे कल्पनाशील कविता सम्भवत: ‘जल पाँखी’ है : ‘वे पानी के फूल हैं, पानी में ही फूलते, महकते, और झड़ते हुए, वे रात भर पानी की आँखों में, रंगीन स्वप्न की तरह रहते हैं, और भोर के धुँधलके में उड़ते हैं, जैसे धरती के प्रार्थना गीत हों।’ लेकिन प्रबल गुरुत्वाकर्षण समुद्र से अधिक पृथ्वी का ही है। बड़ी कथा वही है जो छोटी कथा को अपनी तरफ़ खींचती है ‘जैसे पृथ्वी खींचती है हमें अपने गुरुत्वाकर्षण से, जब हम उससे दूर जाने लगते हैं, वह बचाए रखती है, हमारे पाँवों को विस्थापित होने से।’ इसलिए ‘बीज से फूल तक’ की अधिकांश कविताओं का बीज भाव यह ‘विस्थापन’ ही है जिसमें अपनी धरती और अपने लोगों के प्रति आकर्षण तीव्रतर हो जाता है।

एकान्त वस्तुत: छत्तीसगढ़ की ‘कन्हार’ के कवि हैं और ‘कन्हार केवल मिट्‌टी का नाम नहीं है’ और यह केवल एक छोटा-सा ‘अंचल’ भी नहीं है क्योंकि ‘देश के किसी भी हिस्से में मिल जाएगा छत्तीसगढ़।’ इस दृष्टि से एकान्त को कोरा ‘आंचलिक’ कवि कहना भी ठीक न होगा। फिर भी ‘बीज से फूल तक’ कविता का ऐसा विशिष्ट अंचल है ‘जहाँ शब्दों की महक से, गमकता है काग़ज़ का हृदय, और मनुष्य की महक से धरती।’ इस प्रसंग में एकान्त यह याद दिलाना नहीं भूलते कि ‘दिन-ब-दिन राख हो रही इस दुनिया में जो चीज़ हमें बचाए रखती है वह केवल मनुष्य की महक है।' इसीलिए उनकी इस उक्ति में सन्देह नहीं होता कि ‘मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ, कि उस सुगन्ध को—जो मिट्‌टी की देह और मनुष्य की साँस को सुवासित करती है—मैं बचाए रख सका हूँ? हालाँकि दिनों-दिन यह कठिन होता जा रहा है।‘ (बुख़ार)।

‘बीज से फूल तक' का काव्य-संसार एक ओर माँ-बाप, भाई-बहन का भरा-पूरा परिवार है तो दूसरी ओर अन्धी लड़की, अपाहिज और बधिर जैसे असहाय लोगों का शरण्य भी और ‘कन्हार’ जैसी लम्बी कविता तो एक तरह से नख-दर्पण में आज के भारत का छाया-चित्र ही है। यदि वे साँस का नगाड़ा बजाते हैं तो उस स्पर्श से भी वाक़िफ़ हैं जिसमें किसी को छूने में उँगलियों के जल जाने की आशंका होती है। इस क्रम में दिवंगत भाई के लिए लिखी हुई कविताएँ सबसे मर्मस्पर्शी हैं, ख़ास तौर से ‘पाँचवें की याद’!

‘अन्न हैं मेरे शब्द’ से अपनी काव्य-यात्रा आरम्भ करनेवाले एकान्त आज भी विश्वास करते हैं कि ‘जहाँ कोई नहीं रहता, वहाँ शब्द रहते हैं।’ आज जब चारों ओर से 'शब्द पर हमला' हो रहा है, एकान्त उन थोड़े से कवियों में हैं जो ‘शब्द’ को अपनी कविताओं से एक नया अर्थ दे रहे हैं। निश्चय ही एकान्त का यह तीसरा काव्य-संकलन एक लम्बी छलाँग है और ऊँची उड़ान भी—कवि के ही शब्दों में एक भयानक शून्य की भरपाई।

—नामवर सिंह

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Beej Se Phool Tak
Your Rating
Ekant Shrivastava

Author: Ekant Shrivastava

एकान्त श्रीवास्तव

जन्म : 8 फरवरी, 1964; ज़िला—रायपुर (छत्तीसगढ़) का एक क़स्बा छुरा।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), एम.एड., पीएच.डी.।

प्रमुख कृतियाँ : ‘अन्न हैं मेरे शब्द’ (1994), ‘मिट्टी से कहूँगा धन्यवाद’ (2000), ‘बीज से फूल तक’ (2003) (कविता-संग्रह); ‘कविता का आत्मपक्ष’ (समालोचना, 2006), ‘शेल्टर फ्रॉम दि रेन  (अंग्रेज़ी में अनूदित कविताएँ, 2007); ‘मेरे दिन मेरे वर्ष’ (स्मृति कथा, 2009), ‘बढ़ई, कुम्हार और कवि’ (लम्बी कविता, 2013), ‘पानी भीतर फूल’ (उपन्यास, 2013); ‘धरती अधखिला फूल है’ (कविता-संग्रह, 2013)।

अनुवाद : कविताएँ अंग्रेज़ी व कुछ भारतीय भाषाओं में अनूदित। लोर्का, नाजिम हिकमत और कुछ दक्षिण अफ्रीकी कवियों की कविताओं का अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद।

सम्पादन : नवम्बर 2006 से दिसम्बर 2008 तक तथा जनवरी 2011 से कुछ वर्षों तक ‘वागर्थ’ का सम्पादन।

पुरस्कार : शरद बिल्लौरे, रामविलास शर्मा, ठाकुर प्रसाद, दुष्यन्त कुमार, केदार, नरेन्द्र देव वर्मा, सूत्र,हेमन्त स्मृति, जगत ज्योति स्मृति, वर्तमान साहित्य—मलखान सिंह सिसौदिया कविता पुरस्कार।

ई-मेल: shrivastava.ekant@gmail.com

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top