Barish, Dhuaan Aur Dost

Fiction : Stories
Author: Priyadarshan
As low as ₹79.20 Regular Price ₹99.00
You Save 20%
In stock
Only %1 left
SKU
Barish, Dhuaan Aur Dost
- +

प्रियदर्शन की इन कहानियों में एक धड़कता हुआ समाज दिखता है—वह समाज जो हमारी तेज़ दिनचर्या में अनदेखा-सा, पीछे छूटता हुआ-सा रह जाता है। इनमें घरों और दफ़्तरों की चौकीदारी करते वे दरबान हैं जो अपने बच्चों के लिए बेहतर और सुन्दर भविष्य की कल्पना करते हैं, ऐसे मामूली सिपाही हैं जो भीड़ पर डंडे चलाते-चलाते किसी बच्चे के ऊपर पंखा झलने लगते हैं, ऐसी लड़कियाँ हैं जो हर बार नई लगती हैं और अपनी रेशमी खिलखिलाहटों के बीच दु:ख का एक धागा बचाए रखती हैं और ऐसा संसार है जो कुचला जाकर भी क़ायम रहता है।

ज़िन्दगी से रोज़ दो-दो हाथ करते और अपने हिस्से के सुख-दु:ख बाँटते-छाँटते इन चरित्रों की कहानियाँ एक विरल पठनीयता के साथ लिखी गई हैं—ऐसी क़िस्सागोई के साथ जिसमें नाटकीयता नहीं, लेकिन गहरी संलग्नता है जो अपने पाठक का हाथ थामकर उसे दूर तक साथ चलने को मजबूर करती हैं। निहायत तरल और पारदर्शी भाषा में लिखी गईं ये कहानियाँ दरअसल पाठक और किरदार का फ़ासला लगातार कम करती चलती हैं और यहाँ से लौटता हुआ पाठक अपने-आप को ख़ाली हाथ महसूस नहीं करता।

शुष्क और निरे यथार्थ की इकहरी राजनीतिक कहानियों या फिर वायवीय और रूमानी शब्दजाल में खोई मूलत: भाववादी कहानियों से अलग प्रियदर्शन की ये कहानियाँ अपने समय को पूरी संवेदनशीलता के साथ समझने और पकड़ने की कोशिश की वजह से विशिष्ट हो उठती हैं। इनमें राजनीति भी दिखती है, अर्थनीति भी, प्रेम भी दिखता है, दुविधा भी, सत्ता के समीकरण भी दिखते हैं, प्रतिरोध की विवशता भी, लेकिन इन सबसे ज़्यादा वह मनुष्यता दिखती है जिसकी चादर तमाम धूल-मिट्टी के बाद भी जस की तस है।

निस्सन्देह, ‘उसके हिस्से का जादू’ के बाद प्रियदर्शन का यह दूसरा कथा-संग्रह उन्हें समकालीन कथा-लेखकों के बीच एक अलग पहचान देता है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2015
Edition Year 2016 Ed. 3rd
Pages 116p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Barish, Dhuaan Aur Dost
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Priyadarshan

Author: Priyadarshan

प्रियदर्शन

प्रियदर्शन का जन्म 24 जून, 1968 को राँची में हुआ। आपने अॅंग्रेज़ी में राँची विश्वविद्यालय से एम.ए. की पढ़ाई करने के बाद उसी शहर से पत्रकारिता की शुरुआत की।

आपकी प्रकाशित पुस्तकें हैं : ‘ज़िन्दगी लाइव’ (उपन्यास); ‘बारिश, धुआँ और दोस्त’, ‘उसके हिस्से का जादू’ (कहानी-संग्रह); ‘नष्ट कुछ भी नहीं होता’ (कविता-संग्रह) सहित नौ किताबें प्रकाशित। कविता-संग्रह मराठी में और उपन्यास अंग्रेज़ी में अनूदित। सलमान रुश्दी और अरुंधति‍ रॉय की कृतियों सहित सात किताबों का अनुवाद और तीन किताबों का सम्पादन। विविध राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर तीन दशक से नियमित विविधतापूर्ण लेखन और हिन्दी की सभी महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन।

सम्मान : कहानी के लिए पहला 'स्पन्दन सम्मान'।

Read More
Books by this Author

Back to Top