Andher Nagari

As low as ₹32.00 Regular Price ₹40.00
You Save 20%
In stock
Only %1 left
SKU
Andher Nagari
- +

प्रस्तुत पुस्तक 'अंधेर नगरी' भारतेन्‍दु ने बनारस में नेशनल थियेटर के लिए एक दिन में सन् 1881 में लिखा था जो काशी के दशाश्वमेघ घाट पर उसी दिन अभिनीत भी हुआ था।

'अंधेर नगरी' को रोचक विनोदपूर्ण बनाने के लिए उसका कथात्मक ढाँचा सादा सामान्य रखा है, पर व्यंग्य को तीव्रतर बनाने के लिए ज़रूरी संकेत पहले दृश्य से ही दिए गए हैं।

'अंधेर नगरी' अंग्रेज़ राज्य का ही दूसरा नाम है। संवाद व्यंग्यपूर्ण अभिप्रायमूलक है। समूचा प्रकरण तमाशा जैसा ही है। क्योंकि 'अंधेर नगरी' की अंधेरगर्दी जिस हास्यास्पद परिणति तक दिखाई गई है, वह अकल्पनीय या अविश्वसनीय होते हुए भी यथार्थ के निकट है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 64p
Translator Not Selected
Editor Parmanand Srivastav
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 18 X 12 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Andher Nagari
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Bhartendu Harishchandra

Author: Bhartendu Harishchandra

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

हिन्दी साहित्य के जन्मदाता और भारतीय नवोत्थान के प्रतीक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 1850 ई. में हुआ।

शिक्षा क्वींस कॉलेज बनारस से हुई। बाद में स्वाध्याय से हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी के अतिरिक्त मराठी, बांग्ला, गुजराती, मारवाड़ी, पंजाबी, उर्दू इत्यादि भारतीय भाषाओँ का ज्ञान अपनी प्रतिभा के बल पर अर्जित किया।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने देश और हिन्दी भाषा तथा साहित्य की जो सेवा की, वह चिरस्मरणीय रहेगी। उनकी नाटकीय रचनाएँ तीन भागों में विभक्त की जा सकती हैं—अनूदित, मौलिक तथा अपूर्ण जो सामाजिक, धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, राष्ट्रीय एवं राजनीतिक विषयों पर आधारित हैं।

सन् 1880 ई. में पं. रघुनाथ, पं. सुधाकर द्विवेदी, पं. रामेश्वरदत्त व्यास आदि के प्रस्तावनानुसार उन्हें भारतेन्दु की पदवी से विभूषित किया गया।

6 जनवरी, 1885 ई. को चौंतीस वर्ष की अल्पायु में देहान्त हो गया।

Read More
Books by this Author

Back to Top