Parmanand Srivastav
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परमानन्द श्रीवास्तव
जन्म : 10 फरवरी, 1935
पहली कविता ‘नई धारा’ (1954) में और आलोचना के रूप में पहला निबन्ध (1957) ‘युगचेतना’ में प्रकाशित। दर्जन-भर कहानियाँ—‘कहानी’, ‘सारिका’, ‘धर्मयुग’, ‘अणिमा’ आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित। आलोचक और कवि के रूप में ख़ास अपनी पहचान। कई लघु पत्रिकाओं के सम्पादन में सहयोग। कई वर्षों तक आलोचना की प्रसिद्ध पत्रिका ‘आलोचना’ के सम्पादन से सम्बद्ध रहे। अनियतकालीन पत्रिका ‘साखी’ का सम्पादन किया।
‘व्यास सम्मान’ और ‘भारत भारती पुरस्कार’ के अलावा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘समकालीन कविता का यथार्थ’ के लिए ‘रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’ से सम्मानित। आलोचना की दो अन्य पुस्तकें ‘कवि-कर्म और काव्य भाषा’ एवं ‘उपन्यास का यथार्थ और रचनात्मक भाषा’ तथा कविता-संग्रह ‘अगली शताब्दी के बारे में’ उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी की साधारण सभा (1983-02) के सदस्य रहे। साहित्य अकादेमी के लिए ‘समकालीन हिन्दी कविता’ और ‘समकालीन हिन्दी आलोचना’ का सम्पादन। गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रेमचन्द पीठ के प्रोफ़ेसर के रूप में 1995 में सेवानिवृत्त। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा एमेरिटस प्रोफ़ेसर मनोनीत। एक वर्ष बर्धवान विश्वविद्यालय (प.बं.) में हिन्दी विभाग के प्रोफ़ेसर रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय की घनश्यामदास बिड़ला व्याख्यानमाला में समकालीन कविता पर तीन व्याख्यान। भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता की ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी स्मृति व्याख्यानमाला’ में ‘उपन्यास का भूगोल’ और ‘उपन्यास की मुक्ति’ विषय पर दो व्याख्यान। ‘उपन्यास का समाजशास्त्र अध्ययन’ अनुसन्धान योजना के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा रंगनाथ फ़ेलोशिप।
प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : कविता—‘उजली हँसी के छोर पर’ (1960), ‘अगली शताब्दी के बारे में’ (1981), ‘चौथा शब्द’ (1993), ‘एक अनायक का वृत्तान्त’ (2004); कहानी-संग्रह—‘रुका हुआ समय’; आलोचना—‘नई कविता का परिप्रेक्ष्य’ (1965), ‘हिन्दी कहानी की रचना प्रक्रिया’ (1963), ‘कविकर्म और काव्यभाषा’ (1975), ‘उपन्यास का यथार्थ और रचनात्मक भाषा’ (1975), ‘जैनेन्द्र और उनके उपन्यास’ (1976), ‘समकालीन हिन्दी कविता का व्याकरण’ (1980), ‘समकालीन कविता का यथार्थ’ (1988), ‘शब्द और मनुष्य’ (1988), ‘उपन्यास का पुनर्जन्म’ (1995) तथा ‘कविता का अर्थात्’ (1999), ‘कविता का उत्तर जीवन आलोचना’ (2004); डायरी—‘एक विस्थापित की डायरी’; निबन्ध-संग्रह—‘अँधेरे कुएँ से आवाज़’।
निधन : 5 नवम्बर, 2013