Amar Shaheed Ashfaq Ulla Khan-Paper Back

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‘‘जब तुम दुनिया में आओगे तो मेरी कहानी सुनोगे और मेरी तस्वीर देखोगे। मेरी इस तहरीर को मेरे दिमाग़ का असर न समझना। मैं बिलकुल सही दिमाग़ का हूँ और अक़्ल ठीक काम कर रही है। मेरा मक़सद महज़ बच्चों के लिए लिखना यूँ है कि वह अपने फ़राइज़ महसूस करें और मेरी याद ताज़ा करें।’’

उक्त बातें क्रान्तिकारी शहीद अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने अपने भतीजों के लिए, फाँसी से ठीक पूर्व लिखी थीं। उनका मक़सद देश की नौजवान पीढ़ी को उनके दायित्वों और प्रतिबद्धताओं से वाक़िफ़ कराना था। देशभक्ति से सराबोर ऐसे क्रान्तिकारी आज विस्मृत कर दिए गए हैं। क्रान्तिकारियों और स्वतंत्रता-सेनानियों के हमदर्द बनारसीदास चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित यह पुस्तक अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के क्रान्तिकारी जीवन और उनके काव्य-संसार से पाठक का परिचय कराती है। दरअसल उनकी रचनाओं और जीवन के मुक़ाम के रास्ते दो नहीं एक रहे हैं। पुस्तक में अशफ़ाक़ उल्ला का बचपन, सरफ़रोशी की तमन्नावाले जवानी के दिन, अंग्रेज़ों के प्रति मुखर विद्रोह और अन्ततः देश की ख़ातिर फाँसी के तख़्ते पर चढ़ाए जाने तक की सारी बातें सिलसिलेवार दर्ज हैं। किताब का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है—अशफ़ाक़ के पत्र, उनके सन्देश, उनकी ग़ज़लें, शायरी तथा उनके लेख जिनमें वह अपनी ‘ख़ानदानी हालत’, ‘बचपन और तालीमी तरबियत’, ‘स्कूल और मायूस ज़िन्दगी’ और ‘जज़्बाते-इत्तिहादी इस्लामी’ का यथार्थ वर्णन करते हैं। रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला को जानना देश की गंगा-जमना तहज़ीब की विरासत और उनके रग-रेशे में प्रवाहित देशभक्ति और मित्रभाव को भी जानना है। बनारसीदास चतुर्वेदी के अलावा रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी और रियासत उल्ला ख़ाँ के लेख भी अशफ़ाक़ की वतनपरस्ती और ईमान की सच्ची बानगी पेश करते हैं। निस्सन्देह, यह पुस्तक अशफ़ाक़ को नए सिरे से देखने और समझने में मददगार साबित होती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 172p
Price ₹250.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Banarsidas chaturvedi

Author: Banarsidas chaturvedi

बनारसीदास चतुर्वेदी


जन्म : 24 दिसम्बर, 1892 को फ़ीरोज़ाबाद (उ.प्र.) में एक ग्राम शिक्षक पं. गणेशीलाल चौबे के घर।
शिक्षा : इंटरमीडिएट 1913 में।
पहले स्कूल–शिक्षक, फिर छह वर्ष इन्‍दौर के राजकुमार कॉलेज में, तदनन्तर चार वर्ष अहमदाबाद में गांधीजी के गुजरात विद्यापीठ में हिन्दी अध्यापन।
विद्यार्थी रहते हुए ही लेखन–प्रकाशन। कुछ साल स्वतंत्र पत्रकारिता। सन् 1927 में ‘विशाल भारत’ (कोलकाता) के संस्थापक-सम्पादक। बाद में पाक्षिक लघु पत्रिका ‘मधुकर’ (टीकमगढ़) का सम्पादन ।
सृजन : ‘फिजी द्वीप में मेरे 21 वर्ष’ (फीजी से लौटे गिरमिटिया पं. तोताराम सनाढ्य की आपबीती), ‘प्रवासी भारतवासी’ सहित कई पुस्तकें प्रकाशित। ‘शहीद ग्रन्‍थावली’ का सम्पादन।
1945 में अ.भा. हिन्दी पत्रकार सम्मेलन और 1955 में भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष।
बारह वर्ष (1952–64) तक पहले विन्ध्य प्रदेश और फिर मध्‍य प्रदेश की ओर से राज्यसभा सदस्य।
1959 और 1966 में सरकारी निमंत्रण पर सोवियत रूस की साहित्यिक–यात्रा।
क्रान्तिकारी शहीदों के परिवारों को आर्थिक सुरक्षा दिलाने और दिवंगत साहित्यकारों की कीर्तिरक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका। श्रमजीवी पत्रकारों की आर्थिक–बौद्धिक सुदशा व उन्नति के लिए वे आजीवन प्रयत्नशील रहे।
निधन : जन्म–स्थान में ही 2 मई, 1985 को।

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