Abhivanchiton Ka Shikshadhikar : Ek Srijanvadi Prayog-Hard Back

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9788126717460
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आधुनिक शिक्षा व्यवस्था केवल उच्च और मध्यम वर्गों की सेवा करती है। निम्न-मध्य और निम्न वर्गों के विद्यार्थी इसमें अपनी वास्तविकताओं के बरक्स खड़ी दुनियाओं के अनुकरण से ज्‍़यादा कुछ हासिल नहीं करते। कुछ प्रयास इस दिशा में ज़रूर हुए हैं कि वंचित और हाशिए पर पड़े लोगों तक शिक्षा पहुँचे, लेकिन वह किस रूप में पहुँच पाई है और कितनी, इसका कोई स्पष्ट आकलन हमारे सामने नहीं है। एक सरोकारवान शोध अध्ययन पर आधारित यह पुस्तक कुछ ऐसे पैमानों को गढ़ने की कोशिश करती है जिनके द्वारा हम अभिवंचित समुदायों तक पहुँची शिक्षा की गुणवत्ता, स्वरूप और मात्रा का अन्‍दाज़ा लगा सकते हैं। साथ ही शिक्षा के अपने अधिकार को हासिल करने में क्या कुछ करना आवश्यक है, इसका भी उल्लेख किया गया है। शोध के आधार पर मिले परिणामों के विश्लेषण से शैक्षिक परिदृश्य में सकारात्मक परिवर्तन हेतु एक व्यावहारिक मॉडल के निरूपण का प्रयास भी यह पुस्तक करती है। यह पुस्तक इस बात को भी विशेष रूप से रेखांकित करती है कि अभिवंचित तबकों के बच्चे भी इस देश की उतनी ही मूल्यवान पूँजी हैं जितने सम्पन्न और खाते-पीते लोगों की सन्तानें। ज़रूरत है बस निष्ठा और ईमानदारी के साथ उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने, और उससे भी ज्‍़यादा मुख्यधारा में इनके लिए स्थान बनाने की।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 256P
Price ₹350.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
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Author: Vijay Prakash

विजय प्रकाश

भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी हैं। सम्प्रति वे बिहार सरकार के अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग तथा सहकारिता विभाग के प्रधान सचिव के पद पर कार्यरत हैं। पूर्व में वे राज्य सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग एवं कल्याण विभाग में वरिष्ठ पदों पर कार्य कर चुके हैं। वे सृजनशीलता के क्षेत्र में अपने शोध के लिए विख्यात रहे हैं तथा एक नवाचारी शिक्षण पद्धति ‘सृजनवादी शिक्षण’ के प्रणेता के रूप में भी जाने जाते हैं। इन्होंने बच्चों के सृजनवादी शिक्षण हेतु दर्जनों पुस्तकें एवं शैक्षिक सामग्रियाँ विकसित की हैं। उनका विश्वास है कि इस शिक्षण पद्धति के माध्यम से ही सामाजिक न्याय के साथ विकास का सपना साकार हो सकता है। दलित एवं अभिवंचित वर्ग के अधिकारों की प्राप्ति एवं जनतंत्र के लिए शिक्षा के प्रसार में यह पद्धति एक उपयोगी हथियार सिद्ध हो सकती है।

 

शैलेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव

आप अभिवंचितों के हक़ों की प्राप्ति के लिए पिछले साठ वर्षों से संघर्षरत हैं। आपने भौतिकशास्त्र में विश्वविद्यालय के प्राध्‍यापक की सेवा का पड़ाव पार करने के बाद सामाजिक कार्यकर्त्ता का जीवन अपना लिया है और बिहार एवं झारखंड में शिक्षा, महिला सशक्तीकरण और दलितों तथा आदिवासियों की समस्याओं से जूझते रहे हैं। आपने भौतिकी, ट्रेड यूनियन तथा श्रमिकों के अधिकार, सामाजिक आन्‍दोलनों और शिक्षा की समस्याओं पर काफ़ी लिखा है। बिहार में साक्षरता आन्‍दोलनों की शुरुआत करने में अग्रणी रहे हैं। सम्प्रति अभिवंचितों की शिक्षा, सृजनवाद और जनतंत्र के लिए शिक्षा के शोध एवं अध्‍ययन से जुड़े हैं।

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