Aalochana Ka Vivek

Author: Rajendra Kumar
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Aalochana Ka Vivek

डॉ. देवीशंकर अवस्थी के चिन्‍तन और विवेचन का कैनवस अत्यन्‍त विस्तृत है—सैद्धान्तिक से लेकर व्यावहारिक आलोचना तक उत्‍तरोत्‍तर गूढ़ और चुनौतीपूर्ण सवालों से उन्होंने मुठभेड़ की है। कालिदास, निराला, महादेवी वर्मा, प्रसाद, प्रतापनारायण मिश्र, प्रेमचन्द से लेकर ग्रीक पौराणिक गाथाएँ तक उनकी लेखनी के प्रिय विषय हैं। इसके साथ उनकी सरस आलोचनात्मक वृत्ति वृन्‍दावन, मथुरा, मैसूर, ताजमहल, रानीखेत, मसूरी आदि के सौन्दर्य में भी रमी है। पर उनके आलोचक का सबसे उल्लेखनीय गुण यह है कि वह नव्यता और सम-सामयिकता की चेतना से अनुप्राणित है। इसके चलते उनकी दृष्टि एक नई ऊर्जा और सार्थकता से लैस है। यही चीज़ उन्हें हमेशा प्रासंगिक बनाए रखेगी। डॉ. अवस्थी ने साहित्य की सभी विधाओं को मूल्यवान ढंग से समृद्ध किया है, जैसे—आलोचना, रंग-समीक्षा, कविता, नाटक, प्रहसन, कहानी, रिपोर्ताज, पत्र और डायरी।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 386p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
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Rajendra Kumar

Author: Rajendra Kumar

डॉ. राजेन्‍द्र कुमार

जन्म : 24 जुलाई, 1943; कानपुर (उत्तर प्रदेश)।

प्रमुख कृतियाँ : ‘ऋण गुणा ऋण’, ‘हर कोशिश है एक बग़ावत’, ‘आईना-द्रोह’ (लम्‍बी कविता) (कविता-संग्रह); ‘अनन्‍तर तथा अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘प्रतिबद्धता के बावजूद’ (निबन्‍ध-संग्रह); साही के बहाने समकालीन रचनाशीलता पर एक बहस’, ‘आलोचना का विवेक’, ‘अमन बनाम आतंक’, ‘प्रेमचन्‍द की कहानियाँ : परिदृश्य और परिप्रेक्ष्य’, ‘स्वाधीनता की अवधारणा और निराला’, ‘बहुवचन’ (पत्रिका), ‘अभिप्राय’ (पत्रिका) (सम्‍पादन)।

सम्‍मान : ‘मीरा स्मृति सम्मान’, उ.प्र. हिन्‍दी संस्थान द्वारा सम्मानित, ‘गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान’ आदि।

 

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