Udaasi Ka Dhrupad

Author: Rajendra Kumar
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Udaasi Ka Dhrupad
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राजेन्द्र कुमार के इस संग्रह में उनके पिछले संग्रहों से कुछ अलग मनःस्थिति की कविताएँ हैं—ऐसी खिड़कियों की तरह, जो बाहर से ज्यादा, कवि के अपने भीतर की ओर खुलती हैं। कुछ-कुछ मीर की तरह की अपनी विकलता में 'ये धुआँ कहाँ से उठता है' की सुरागरसी-सी करती हुई।
हमारा समय गुरूर में है कि उसने मनुष्य को क्या- क्या नहीं बख्शा है। 'मनुष्यता' उदास है कि वह किस क़दर अकेली होती जा रही है। जीवन में बहुत कुछ है— काम्य-अकाम्य। ये कविताएँ काम्य- अकाम्य के ऐसे संधिस्थल की कविताएँ हैं, जहाँ आशा-निराशा, अँधेरा- उजाला जैसे परस्पर विलोमार्थी से प्रतीत होने वाले शब्द भी आपस में संवाद करने को विकल हैं कि आज की चकाचौंध- भरी चहल-पहल में घिरे मनुष्य के संदर्भ में क्या अर्थ दें, अकेली पड़ती जाती 'मनुष्यता' के पक्ष में क्या अर्थ दें। अकारण नहीं है कि कवि को अंधेरा कभी रोशनी से अधिक अकुंठ लगने लगता है और उदासी अधिक संवेदनशील और उम्मीदभरी लगती है कि 'अकेला नहीं हूँ मैं'। यह उदासी का ध्रुपद है, जिसके आलाप में प्रिय के 'न होने में भी होने की अनुभूति की लय है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 152p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Rajendra Kumar

Author: Rajendra Kumar

डॉ. राजेन्‍द्र कुमार

जन्म : 24 जुलाई, 1943; कानपुर (उत्तर प्रदेश)।

प्रमुख कृतियाँ : ‘ऋण गुणा ऋण’, ‘हर कोशिश है एक बग़ावत’, ‘आईना-द्रोह’ (लम्‍बी कविता) (कविता-संग्रह); ‘अनन्‍तर तथा अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘प्रतिबद्धता के बावजूद’ (निबन्‍ध-संग्रह); साही के बहाने समकालीन रचनाशीलता पर एक बहस’, ‘आलोचना का विवेक’, ‘अमन बनाम आतंक’, ‘प्रेमचन्‍द की कहानियाँ : परिदृश्य और परिप्रेक्ष्य’, ‘स्वाधीनता की अवधारणा और निराला’, ‘बहुवचन’ (पत्रिका), ‘अभिप्राय’ (पत्रिका) (सम्‍पादन)।

सम्‍मान : ‘मीरा स्मृति सम्मान’, उ.प्र. हिन्‍दी संस्थान द्वारा सम्मानित, ‘गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान’ आदि।

 

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