Aadikaleen Aur Madhyakaleen kaviyon Ka Aalochanatmak Paath

Author: Hemant Kukreti
Edition: 2017, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Aadikaleen Aur Madhyakaleen kaviyon Ka Aalochanatmak Paath
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भारतीय जनमानस में अगर धर्म के बाद किसी भावना को बहुत साफ़ ढंग से देखा जा सकता है, तो वह कविता-प्रेम है। यही कारण है कि भारत में साहित्य की अन्य विधाओं के सापेक्ष कविता की परम्परा न सिर्फ़ बहुत लम्बी, गहरी और व्यापक रही है, बल्कि उसने भारतीय समाज के विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक युगों को वाणी भी दी है। यही नहीं उसने एक सामाजिक शक्ति के रूप में अपनी निर्णायक भूमिका भी निभाई है।

इस पुस्तक में हिन्दी कविता के दो आरम्भिक और महत्त्वपूर्ण युगों का विवेचन किया गया है, एक आदिकाल और दूसरा मध्यकाल। अब तक उपलब्ध सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी कविता का उद्भव सातवीं-आठवीं शताब्दी के आसपास हुआ जिसकी पृष्ठभूमि में पालि, प्राकृत और अपभ्रंश का बड़ा योगदान है। आदिकालीन काव्य में अपभ्रंश का बहुत रचनात्मक इस्तेमाल मिलता है। इस दौर की कविता की मूल संवेदना भक्ति, प्रेम, शौर्य, वैराग्य और नीति आदि से मिल-जुलकर बनी है।

आदिकालीन काव्य के बाद भक्तियुग में कबीर, सूर, तुलसी तथा जायसी जैसे महान कवियों की अगुआई में काव्य रचा गया। संवेदना और शील की दृष्टि से इस युग में भी कई काव्य-धाराएँ मौजूद थीं। सन्त कवियों की वाणी की व्याप्ति दूर-दूर तक थी। ये लोग अक्सर भ्रमणरत रहते थे, इसलिए इनकी भाषा में बहुत विविधता मिलती है।

इस पुस्तक में इन दोनों युगों की कविता की विस्तार से, तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में विवेचना की गई है। दोनों युगों के महत्त्वपूर्ण कवियों की रचनाओं, उनके जीवन-वृत्त और उनके युग की विशेषताओं की जानकारी से समृद्ध इस पुस्तक से छात्रों को निश्चय ही अत्यन्‍त लाभ होगा। हिन्दी साहित्य के विद्वान और महत्त्वपूर्ण कवि हेमंत कुकरेती ने अपने अध्यापन-अनुभव को समेटते हुए इस पुस्तक को छात्रों के लिए उपादेय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 304p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Hemant Kukreti

Author: Hemant Kukreti

हेमंत कुकरेती

दिल्ली में जन्मे हेमंत कुकरेती महानगरीय जीवन के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से यू.जी.सी. फ़ेलोशिप योजना के तहत भारतेन्दु और शंकर शेष के नाटकों पर एम.फिल्. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पत्र-पत्रिकाओं में कविता के अलावा समीक्षात्मक टिप्पणियाँ तथा कला-संस्कृति, फ़‍िल्म और रंगमंच पर नियमित लेखन। आकाशवाणी-दूरदर्शन के लिए रचनात्मक कार्य। महत्त्वपूर्ण साहित्यिक आयोजनों में आलेख एवं काव्य-पाठ। समकालीन कविता के प्रतिनिधि‍ काव्य-संकलनों के सहयोगी कवि। रूसी, पंजाबी, मराठी, कन्नड़, उर्दू, उड़िया, असमी व जर्मन में कविताएँ अनूदित।

प्रमुख प्रकाशन : ‘चलने से पहले’, ‘नया बस्ता’, ‘चाँद पर नाव’, ‘कभी जल, कभी जाल’, ‘धूप के बीज’ (कविता-संग्रह); ‘कवि ने कहा’ (संकलित कविताएँ); ‘भारतेन्दु और उनकी अँधेर नगरी’, ‘शंकर शेष के नाटकों में संघर्ष-चेतना’, ‘हिन्दी उपन्यास : नया पाठ’, ‘आदिकालीन और मध्यकालीन कवियों का आलोचनात्मक पाठ’, ‘नवजागरणकालीन कवियों की पहचान’, ‘कवि परम्परा की पड़ताल’ (आलोचना); ‘शंकर शेष : समग्र नाटक’, ‘भारत की लोकसंस्कृति’ (सम्पादन); ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, ‘हिदी भाषा और साहित्य का वस्तुनिष्ठ इतिहास’ (साहित्येतिहास)।

सम्मान : ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’ (2001), ‘कृति सम्मान’ (2002) तथा ‘केदार सम्मान’ (2003)।

सम्प्रति : स्नातकोत्तर श्यामलाल कॉलेज (दि.वि.वि.), शाहदरा, दिल्ली के हिन्दी विभाग में एसोशिएट प्रोफ़ेसर। 'साहित्य अमृत' (मासिक) के संयुक्त सम्पादक।

 

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