Gandhi-Darshan : Alochnatmak Adhyayan

Author: Hemant Kukreti
Edition: 2020, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Gandhi-Darshan : Alochnatmak Adhyayan
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गांधी के नाम के आगे और बाद में लगे तमाम विशेषण—महात्मा, महामानव, अतिमानव इत्यादि उनके विराट व्यक्ति‍त्व और कृतित्व के सामने अधूरे और अपर्याप्त हैं। उन्होंने भारत जैसे महादेश ही नहीं, समूची दुनिया को अपने जीवनकाल में गहरे प्रभावित किया और जीते-जी निजंधरी नायक बन गए। गांधी को हुए डेढ़ सदी बीत गई और कई सदियाँ बीत जाएँगी—गांधी का गांधीत्व बरकरार रहेगा और लगातार विकसित होता रहेगा। गांधी ने विधि‍वत् कुछ नहीं लिखा लेकिन भारत की राजनीति, अर्थनीति, संस्कृति, स्त्री और दलित-विमर्श, शि‍क्षा-नीति, दर्शन—कहना न होगा, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को गहरे प्रभावित किया है। आज उनके कहे और लिखे शब्दों के माध्यम से गांधी-दर्शन आकार ले चुका है। दुनिया-भर में उनके काम की प्रासंगिकता की पड़ताल हो रही है। ऐसा ही कुछ काम इस किताब में हेमंत कुकरेती ने किया है। वे प्रसिद्ध कवि हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहासकार हैं। सुधी आलोचक हैं। साहित्य के मर्मज्ञ अध्यापक हैं। उन्होंने एक पाठक के नज़रिए से गांधी को समझने और समझाने की कोशिश की है। यह हमारे समय के एक सुकवि का सुललित, सुगठित और सुचिन्तित गद्य है। इसलिए वैचारिक विश्लेषण होने के बावजूद इसमें अद्भुत पठनीयता है।

हेमंत कुकरेती ने गांधी-दर्शन की आलोचनात्मक कमेंट्री करते हुए गांधी की राष्ट्र-परिकल्पना, स्वराज, स्वदेशी, सत्याग्रह, अहिंसा, ग्रामोद्योग, रामराज्य जैसी अवधारणाओं के आधार पर गांधी के अर्थदर्शन, राजनीतिक सोच, उनकी दलित चिन्ता, शिक्षा का वर्तमान परिदृश्य, वर्ण-व्यवस्था, स्त्री-जीवन के सवाल यानी गांधीवाद को जिस बौद्धिक संवेदनशीलता के साथ परखा है, वह गांधी और उनके दर्शन को आसानी से समझा देता है। इस नज़रिए से यह किताब आकार में दीर्घकाय न होने के बाद भी साधारण पाठ्य-पुस्तक से आगे बढ़कर गांधी विषयक सन्दर्भ-ग्रन्‍थ बन गई है।     —प्रताप सहगल

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, Ed. 1st
Pages 151p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Hemant Kukreti

Author: Hemant Kukreti

हेमंत कुकरेती

दिल्ली में जन्मे हेमंत कुकरेती महानगरीय जीवन के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से यू.जी.सी. फ़ेलोशिप योजना के तहत भारतेन्दु और शंकर शेष के नाटकों पर एम.फिल्. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पत्र-पत्रिकाओं में कविता के अलावा समीक्षात्मक टिप्पणियाँ तथा कला-संस्कृति, फ़‍िल्म और रंगमंच पर नियमित लेखन। आकाशवाणी-दूरदर्शन के लिए रचनात्मक कार्य। महत्त्वपूर्ण साहित्यिक आयोजनों में आलेख एवं काव्य-पाठ। समकालीन कविता के प्रतिनिधि‍ काव्य-संकलनों के सहयोगी कवि। रूसी, पंजाबी, मराठी, कन्नड़, उर्दू, उड़िया, असमी व जर्मन में कविताएँ अनूदित।

प्रमुख प्रकाशन : ‘चलने से पहले’, ‘नया बस्ता’, ‘चाँद पर नाव’, ‘कभी जल, कभी जाल’, ‘धूप के बीज’ (कविता-संग्रह); ‘कवि ने कहा’ (संकलित कविताएँ); ‘भारतेन्दु और उनकी अँधेर नगरी’, ‘शंकर शेष के नाटकों में संघर्ष-चेतना’, ‘हिन्दी उपन्यास : नया पाठ’, ‘आदिकालीन और मध्यकालीन कवियों का आलोचनात्मक पाठ’, ‘नवजागरणकालीन कवियों की पहचान’, ‘कवि परम्परा की पड़ताल’ (आलोचना); ‘शंकर शेष : समग्र नाटक’, ‘भारत की लोकसंस्कृति’ (सम्पादन); ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, ‘हिदी भाषा और साहित्य का वस्तुनिष्ठ इतिहास’ (साहित्येतिहास)।

सम्मान : ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’ (2001), ‘कृति सम्मान’ (2002) तथा ‘केदार सम्मान’ (2003)।

सम्प्रति : स्नातकोत्तर श्यामलाल कॉलेज (दि.वि.वि.), शाहदरा, दिल्ली के हिन्दी विभाग में एसोशिएट प्रोफ़ेसर। 'साहित्य अमृत' (मासिक) के संयुक्त सम्पादक।

 

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