अद्भुत है माननीय सम्बन्धों का ताना-बाना, जीवन-पथ के अनजाने मोड़ से गुज़रते हुए, कौन, कब, कहाँ मिले कौन जाने? इसे संयोग कहें या नियति...? यह तय नहीं है। मीठे सम्बन्धों को परिभाषा में बाँधना ज़रूरी भी नहीं है। उड़ते पलों को मुट्ठियों में क़ैद करने में भी समझदारी नहीं है। जीवन के दीर्घ प्रवाह में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है—पहला क़दम, दूसरा और फिर तीसरा...और फिर दीर्घ अनुक्रम...सर्वथा स्वाभाविक है। यह पुस्तक व्यक्तित्व विकास शृंखला की पहली कड़ी है, संवाद का यह क्रम अविच्छिन्न रहेगा।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2003 |
Edition Year | 2009, Ed. 2nd |
Pages | 215p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1.5 |