योगेश्वर अर्थात श्रीकृष्ण के अनेक रूप जनमानस में अंकित हैं—माखन-चोर से लेकर गीता-उपदेशक तक जिन्हें भारतवासियों ने कई कोणों से देखा और प्रेम‌ किया। यह आख्यान उन्हीं श्रीकृष्ण को एक समग्र व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करने का कथात्मक प्रयास है। उनके वंश-इतिहास और जीवन की हर घटना के साथ। कथाकार का मानना है कि कृष्ण के चरित्र को पूरी तरह समझने के लिए हमें चमत्कारों और भावुकता की मन:स्थिति से निकलकर उन्हें एक ऐसे युगपुरुष के रूप में देखना होगा जिसके जीवन का हर क्षण मानवता के लिए एक बहुमूल्य सन्देश है। यह कथा कृष्ण के माता-पिता और उनके भी पूर्वजों की पृष्ठभूमि के वर्णन से आरम्भ होती है जिसमें देवकी और वसुदेव के तप, उनके सुदीर्घ कष्ट और कंस द्वारा उनके छह पुत्रों की हत्या के लोमहर्षक विवरण हमें देखने को मिलते हैं। कृष्ण के बाल्यकाल और छात्र-जीवन को भी कथाकार ने विभिन्न स्रोतों के आधार पर यहाँ पुनर्सृजित किया है। कृष्ण के जीवन में आए विभिन्न पात्रों के माध्यम से चलती यह कथा भगवान श्रीकृष्ण को एक सम्पूर्ण मनुष्य के रूप में स्थापित करती है—एक ऐसा मनुष्य जो एक समय इस पृथ्वी पर अपने दुर्लभ और असाधारण गुणों के साथ उपस्थित था।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 414p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 13.5 X 2.5
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Shakuntala Mishra

Author: Shakuntala Mishra

शकुन्तला मिश्रा

शकुन्तला मिश्रा का जन्म 11 फरवरी, 1956 को कोलकाता में हुआ। उन्होंने राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद से एम.ए. और बी.एड. किया। हिन्दी-अंग्रेजी में संवाद लेखन, कविता तथा आलेख लेखन में उनकी रुचि है। वे समाज सेवा में सक्रिय हैं।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘समर्पण’, ‘सफलता का रहस्य’, ‘आत्म-गुंजन’, ‘स्वर गुंजन’ एवं ‘योगेश्वर’।

ई-मेल : shakuntla@gmail.com

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