Yeh Bhumandal Ki Raat Hai

Author: Pankaj Raag
Edition: 2016, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Yeh Bhumandal Ki Raat Hai
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कविता की यात्रा में अकसर ही कुछ ऐसा होता है जो छूटता जाता है, उसी को समेटते-सहेजते हुए फिर एक और कवि आता है, और समकालीन रचनात्मकता के अधूरे परिदृश्य को पूरा करता है।

पंकज राग का यह संग्रह और उनकी कविताएँ यही काम करती दिखती हैं। न सिर्फ़ विषयों और शीर्षकों में, बल्कि भाषा के प्रयोग और बिम्बों-प्रतीकों के मुखौटों में भी वे उन चीज़ों और भंगिमाओं को पकड़ने की कोशिश करते हैं जो सिर्फ़ उनकी अपनी खोज हैं। “दिन बड़ा अजीब-सा गुज़रे/शाम बड़ी थकी-थकी-सी हो/भूख हो पर लगे नहीं/हरारत हो पर दिखे नहीं/बातें सतरंगी करो/यह भूमंडल की रात है।” संग्रह की पहली और शीर्षक-कविता की शुरुआती ये पंक्तियाँ कवि की विशिष्टता की भूमिका की तरह पाठक के मन में गड़ जाती हैं, जिसका निर्वाह यह संग्रह अन्त तक करता है।

पंकज राग की ये कविताएँ उन चिन्ताओं को तो देखती ही हैं जो आज हम सबके लिए निर्णायक विषय बनी हुई हैं, साथ ही वे उन पीड़ाओं को भी अनदेखा नहीं करतीं जो हमारे अतीत में गुज़री हैं और आज हमारी स्मृतियों में कसकती हैं। ‘दिल्ली : शहर-दर-शहर’ जो इस संग्रह की सबसे लम्बी कविता है, वर्तमान और अतीत का ऐसा ही महाआख्यान बुनती है, जिसमें कवि एक शहर की नियति के बहाने मनुष्य की ही नियति से दो-चार होता है। “तुम मुझे फ़ीरोज़ी बना दो/दिल्ली की उस मध्यवर्गीय लड़की ने अपने पास बैठे लड़के से कहा/कोटला फ़ीरोज़शाह के स्लेटी खँडहरों के बीच/उस लड़के का उत्तर फँस-सा गया/फिर इन दोनों की कहानी का कुछ नहीं हुआ/वैसे ही जैसे फ़ीरोज़ाबाद का भी कुछ न हो सका।”

अतीत से वर्तमान तक व्याप्त मनुष्य के अधूरेपन की निशानदेही करती ये कविताएँ निश्चित रूप से पाठकों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव साबित होंगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 121p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
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Pankaj Raag

Author: Pankaj Raag

पंकज राग

मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) में जन्मे पंकज राग ने सेंट स्टीफ़ंस कॉलेज, दिल्ली से इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से आधुनिक भारतीय इतिहास में एम.फ़िल. की उपाधि प्राप्त की तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग डेढ़ वर्ष तक अध्यापन किया। 1990 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (मध्य प्रदेश संवर्ग) में आए।

पंकज राग ने पुरातत्त्वविज्ञान, अभिलेखागार एवं संग्रहालय आयुक्त, मध्य प्रदेश सरकार के रूप में भी अपनी सेवा प्रदान की है। उन्होंने निदेशक, भारतीय फ़िल्म एवं टेलीविज़न संस्थान, पुणे तथा मध्य प्रदेश सरकार में अन्य महत्त्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया है।

एक संगीत विशेषज्ञ के रूप में पंकज राग ने फ़िल्मों और संस्कृति पर गहन शोध किया है और सन् 1931 से 2005 तक के फ़िल्म संगीत निर्देशकों पर आधारित उनकी पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ बहुचर्चित रही है। वे प्रख्यात हिन्दी कवि हैं। उनके कविता-संग्रह ‘यह भूमंडल की रात है’ पर उन्हें प्रतिष्ठित ‘केदार सम्मान’, ‘मीरा स्मृति सम्मान’ और ‘स्पन्दन कृति सम्मान’ प्राप्त हुआ है। रूपा एंड कम्पनी से प्रकाशित अपनी कृति ‘1857 : दी ओरल ट्रैडिशन’ में उन्होंने लोकगीतों एवं लोककथाओं के माध्यम से प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम को पुनर्सृजित किया है।

उनकी अन्य कृतियाँ हैं—‘विन्टेज मध्य प्रदेश, भोपाल 50 इयर्स’, ‘मास्टर पीसेज ऑफ़ मध्य प्रदेश’, ‘राग-रागिनी फोलियो’, ‘रायसेन का पुरातत्त्व’, ‘राजगढ़ का पुरातत्त्व’, ‘मंदसौर का पुरातत्त्व’, ‘नोन एंड अननोन : एन इंसाइक्लोपीडिया ऑफ़ मॉन्यूमेंट्स ऑफ़ मध्य प्रदेश’ आदि।

फिलहाल वे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय में संयुक्त सचिव एवं महानिदेशक, राष्ट्रीय अभिलेखागार के पद पर कार्यरत हैं।

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