Vimukt Janjatiyan : Badlav Ke Pahlu

Author: Malli Gandhi
Translator: Prakash Dixit
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Vimukt Janjatiyan : Badlav Ke Pahlu
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‘विमुक्त जनजातियाँ : बदलाव के पहलू’ पुस्तक दसारी, डोम्मार, नक्काल, सुगाली, येरुकुला और यनाडी 'अपराधी' जनजातियों के उद्गम और विकास के सम्बन्ध में एक शोधपरक अनुसन्धान का परिणाम है।

1904 और 1914 के बीच पाँच प्रमुख अपराधी जनजाति बस्तियाँ गुंटूर के सीतानगरम और स्टुअर्टपुरम, नेल्लोर के कप्पाराला टिप्पा, कुरनूल के सिद्धपुरम और मेहबूबनगर जिले के लिंगाला में बनाई गई थीं। इन बस्तियों पर अपराधी जनजाति कानून के अन्तर्गत पुलिस और मिशनरियों का कठोर नियंत्रण था और इन समुदायों को लगभग दासता में रहना पड़ता था। इन बस्तियों की स्थापना से अब तक विमुक्त जनजातियों के विविध पहलुओं पर इस पुस्तक के निबन्ध व्यापक शोध और वस्तुगत निरीक्षण पर आधारित हैं। अभिलेखागारों में संचित सामग्री के सतर्क विश्लेषण के माध्यम से किया गया यह अध्ययन जनगण के रूपान्तरण, बस्तियों के स्वरूप, भू-आवंटन, वित्तीय प्रबन्धन, स्वास्थ्य, शिक्षा और आन्ध्र प्रदेश में विविध जनजाति समुदायों की वर्तमान स्थिति को सामने लाता है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 344p
Translator Prakash Dixit
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Malli Gandhi

Author: Malli Gandhi

मल्ली गांधी

मल्ली गांधी का जन्म 1969 में हुआ। उन्होंने हैदराबाद विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. और एम.फिल की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमैनि‍टीज एंड सोशल साइंसेज रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन, मैसूर में बतौर लेक्चरर अध्यापन शुरू किया। उनकी रुचि आधुनिक भारत का इतिहास, सांस्कृतिक इतिहास, सबाल्टर्न इतिहास, शिक्षा का इतिहास आदि विषयों में है। अंग्रेजी और तेलुगु में उनके बीस से ज्यादा आलेख विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। आन्ध्र प्रदेश में जनजातीय शिक्षा से जुड़े एनसीईआरटी की कई महत्त्वपूर्ण शोध परियोजनाओं पर कार्य कर चुके हैं।

उन्होंने अध्यापकों के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का संचालन भी किया है। जनजातीय शिक्षा पर प्रशिक्षण-सामग्री के विकास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है। राज्य एवं केन्द्र सरकारों की विभिन्न संस्थाओं की कार्यशालाओं से भी वे जुड़े रहे हैं। उन्हें ‘इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च फेलोशिप’ (1993-1997) भी मिल चुका है।

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