Vigyan Jantantra Aur Islam

Author: Humayun Kabeer
Translator: Raghuraj Gupta
You Save 15%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Vigyan Jantantra Aur Islam

संसार का इस्लाम से परिचय करानेवाले पैग़म्बर मोहम्मद माने जाते हैं। उनका पूरा जीवन सत्य, निष्ठा का सही पैमाना रहा है। उन्होंने जीवन को तर्कों के आधार पर जीने की सलाह दी। उनका मानना था कि धर्म प्राधिकार पर आधारित न होकर तर्क पर आधारित हो। ‘विज्ञान, जनतंत्र और इस्लाम’ में इन्हीं बिन्दुओं पर विमर्श है।

इस्लाम ने श्रद्धाजनित चमत्कारों का निषेध किया, एकेश्वरवाद पर ज़ोर उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आधार है। मनुष्य–मनुष्य में कोई भेद इस्लाम में नहीं है। सामान्य रूप से यह उसके लोकतांत्रिक मिज़ाज की भी बुनियाद है। जनतंत्र की अवधारणा, मनुष्य के अधिकार, कल्याणराज्य, स्वाधीनता, प्राधिकार और कल्पना, दर्शनशास्त्र का अध्ययन, भारत में शिक्षा की समस्याएँ तथा महात्मा गांधी के विचार–व्यवहार का सम्यक् आकलन प्रसिद्ध चिन्तक तथा राजनेता हुमायूँ कबीर ने इस पुस्तक में किया है।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2000
Edition Year 2000, Ed. 1st
Pages 139p
Translator Raghuraj Gupta
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Vigyan Jantantra Aur Islam
Your Rating

Author: Humayun Kabeer

हुमायूँ कबीर

जन्म : 22 फरवरी, 1906

प्रोफ़ेसर हुमायूँ कबीर का आधुनिक बंगाल के प्रमुख साहित्यकारों, विचारकों एवं राजनीतिज्ञों में अग्रणी स्थान है। उन्होंने अनेक मौलिक ग्रन्थ लिखे। स्वतंत्र भारत में वह मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के प्रमुख सहयोगी रहे। उन्होंने ही मौलाना की प्रसिद्ध कृति ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ का अंग्रेज़ी रूपान्तर किया। वह भारत सरकार में शिक्षा और संस्कृति विभाग के मंत्री भी रहे। कांग्रेस के विभाजन और श्रीमती इंदिरा गांधी से राजनैतिक मतभेद होने के कारण उन्होंने अपने चिन्तनशील स्वभाव और उदात्त संस्कारों को नहीं बदला। देश के निर्माण की समस्याओं पर वह गम्भीर चिन्तन करते रहे।

इतिहास के विद्यार्थियों और स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों के लिए उनकी अवर कल्चरल हेरिटेज पुस्तक अध्ययन, मनन और आलोचना की बेजोड़ कृति रही है। ‘हिस्ट्री ऑफ़ फ़िलॉसफ़ी : ईस्ट एंड वेस्ट’ के सम्पादक के रूप में हुमायूँ कबीर ने अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त की। एक मनीषी अध्यापक, मौलिक और संवेदनशील साहित्यकार, विचारक और समालोचक के रूप में प्रोफ़ेसर कबीर का भारत के विद्वत् समाज में विशिष्ट स्थान रहा है। विज्ञान, जनतंत्र और इस्लाम के रूप में उनके आठ मौलिक और स्मरणीय निबन्धों का यह संकलन इसका ज्वलन्त प्रमाण है।

निधन : 18 अगस्त, 1969

Read More
Books by this Author
Back to Top