Upanyas Ki Sanrachana

Author: Gopal Ray
Edition: 2023, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Upanyas Ki Sanrachana

उपन्यास एक अमूर्त रचना-वस्तु है। ‘वस्तु’ है तो उसका ‘रूप’ भी होगा ही। ‘रूप’ का एक पक्ष वह है, जिसे उपन्यासकार निर्मित करता है। उसका दूसरा पक्ष वह है जिसे पाठक अपनी चेतना में निर्मित करता है। पर उपन्यास का ‘रूप’ चाहे जितना भी अमूर्त और ‘पाठ-सापेक्ष’ हो, वह होता जरूर है। उसकी संरचना को समझना आलोचक के लिए चुनौती है, पर वह सर्वथा पकड़ के बाहर है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। अँगरेजी और यूरोप की अन्य भाषाओं में इसके प्रयास हुए हैं और इस विषय पर अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं। पर उन आलोचकों ने स्वभावतः अपनी भाषाओं के उपन्यासों को ही अपने विवेचन का आधार बनाया है। यहाँ तक कि भारतीय साहित्य में उपलब्ध कथा-रूपों की ओर भी उनकी दृष्टि नहीं गई है। हिन्दी आलोचना भी उपन्यास की ओर विगत कुछ दशकों से ही उन्मुख हुई है। पर आलोचकों की दृष्टि जितनी उसके कथ्य पर रही है, उतनी उसकी संरचना पर नहीं। उपन्यास किस प्रकार ‘बनता’ है, पाठक की चेतना में वह कैसे ‘रूप’ ग्रहण करता है, इस किताब में इसी की तलाश लेखक का उद्देश्य है।
आरम्भिक दो परिच्छेदों में औपन्यासिक संरचना का सैद्धान्तिक विवेचन करने के बाद परवर्ती आठ परिच्छेदों में लगभग दो दर्जन हिन्दी उपन्यासों की संरचना का सविस्तार विवेचन किया गया है। विवेच्य रचनाओं के चयन में ध्यान इस बात का रखा गया है कि वे किसी संरचनाविशेष का प्रतिनिधित्व करती हों।
हिन्दी में उपन्यास की संरचना के विवेचन का यह पहला गम्भीर प्रयास है। पर यह कितना सफल है, इसका निर्णय तो पाठक ही करेंगे।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2023, Ed. 3rd
Pages 491p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 3.5
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Gopal Ray

Author: Gopal Ray

गोपाल राय

जन्म : 13 जुलाई, 1932 को बिहार के बक्सर ज़‍िले के एक गाँव, चुन्नी में (मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र के अनुसार)।

शिक्षा : आरम्भिक शिक्षा गाँव और निकटस्थ क़स्बे के स्कूल में। माध्यमिक शिक्षा बक्सर हाई स्कूल, बक्सर और कॉलेज की शिक्षा पटना कॉलेज, पटना में। स्नातकोत्तर शिक्षा हिन्दी विभाग पटना विश्वविद्यालय, पटना में। पटना विश्वविद्यालय से ही 1964 में 'हिन्दी कथा साहित्य और उसके विकास पर पाठकों की रुचि का प्रभाव’ विषय पर डी.लिट्.. की उपाधि।

21 फरवरी, 1957 को पटना विश्वविद्यालय, पटना में हिन्दी प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति और वहीं से 4 दिसम्बर, 1992 को प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्ति।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘हिन्दी कथा साहित्य और उसके विकास पर पाठकों की रुचि का प्रभाव’ (1966), ‘हिन्दी उपन्यास कोश’ : खंड—1 (1968), ‘हिन्दी उपन्यास कोश’ : खंड—2 (1969), ‘उपन्यास का शिल्प’ (1973), ‘अज्ञेय और उनके उपन्यास’ (1975), ‘हिन्दी भाषा का विकास’ (1995), ‘हिन्दी कहानी का इतिहास’—1 (2008), ‘हिन्दी कहानी का इतिहास’—2 (2011), ‘हिन्दी कहानी का इतिहास’—3 (2014); उपन्यास की पहचान शृंखला के अन्तर्गत : ‘शेखर : एक जीवनी’ (1975), ‘गोदान : नया परिप्रेक्ष्य’ (1982), ‘रंगभूमि : पुनर्मूल्यांकन’ (1983), ‘मैला आँचल’ (2000), ‘दिव्या’ (2001), ‘महाभोज’ (2002), ‘हिन्दी उपन्यास का इतिहास’ (2002), ‘उपन्यास की संरचना’ (2005),  ‘अज्ञेय और उनका कथा-साहित्य’ (2010)।

सम्पादन : पं. गौरीदत्त कृत ‘देवरानी-जेठानी की कहानी’ (1966), ‘हिन्दी साहित्याब्द कोश : 1967-1980’ (1968-81), ‘राष्ट्रकवि दिनकर’ (1975)। जुलाई 1967 से ‘समीक्षा’ पत्रिका का कई वर्षों तक सम्पादन-प्रकाशन।

निधन : 25 सितम्बर, 2015

 

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