RANGBHUMI : PUNARMULYANKAN

Author: Gopal Ray
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RANGBHUMI : PUNARMULYANKAN

‘रंगभूमि’ का प्रकाशन फरवरी, 1925 में हुआ था। इसके लिखे जाने का समय अक्तूबर, 1922 से अगस्त, 1924 तक का है जब भारत में ब्रिटिश शासन की जड़ें मजबूत हो चुकी थीं, दूसरी तरफ उसके खिलाफ स्वाधीनता संग्राम भी तेज होने लगा था। सत्याग्रह एक नए राजनीतिक औजार के रूप में सामने आ रहा था। ‘रंगभूमि’ पर इस सब की गहरी छाप दिखाई देती है। इन अर्थों में यह एक राजनीतिक उपन्यास है और लिखे जाने के समय से ही इसके मूल्यांकन के प्रयास होते रहे हैं।

‘रंगभूमि : पुनर्मूल्यांकन’ पुस्तक में ‘रंगभूमि’ उपन्यास के कथानक का विश्लेषण स्वाधीनता आन्दोलन के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर किया गया है जिसमें प्रेमचन्द के प्रगतिशील मूल्यों और उपन्यास विधा की आधुनिक प्रवृत्तियों के सन्दर्भों का विश्लेषण भी शामिल है। महाकाव्यों की कुलीन नायकत्व की धारणा 'रंगभूमि' में बिलकुल बदल गई है और सूरदास जैसा साधारण लेकिन जीवट से भरपूर चरित्र उपन्यास का नायक बन गया है। कुल मिलाकर कथानक और उसके शिल्प के मूलभूत कथागत अंतरसूत्रों के पड़ताल की जिज्ञासा ‘रंगभूमि : पुनर्मूल्यांकन’ के केन्द्र में है, जिसमें कथानक के साथ रची-बसी भाव-शिल्प संरचना और उसकी भाषिक प्रभावोत्पादकता के कारकों को प्रेमचन्द के साहित्य की तुलनात्मक पृष्ठभूमि में तलाशने का प्रयास किया गया है।

गोपाल राय की यह आलोचना पुस्तक अध्ययन-अध्यापन के उनके सुदीर्घ अनुभव से उपजी है जिसके पीछे उनकी गहरी आलोचना दृष्टि भी स्पष्ट नजर आती है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 96p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Gopal Ray

Author: Gopal Ray

गोपाल राय

जन्म : 13 जुलाई, 1932 को बिहार के बक्सर ज़‍िले के एक गाँव, चुन्नी में (मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र के अनुसार)।

शिक्षा : आरम्भिक शिक्षा गाँव और निकटस्थ क़स्बे के स्कूल में। माध्यमिक शिक्षा बक्सर हाई स्कूल, बक्सर और कॉलेज की शिक्षा पटना कॉलेज, पटना में। स्नातकोत्तर शिक्षा हिन्दी विभाग पटना विश्वविद्यालय, पटना में। पटना विश्वविद्यालय से ही 1964 में 'हिन्दी कथा साहित्य और उसके विकास पर पाठकों की रुचि का प्रभाव’ विषय पर डी.लिट्.. की उपाधि।

21 फरवरी, 1957 को पटना विश्वविद्यालय, पटना में हिन्दी प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति और वहीं से 4 दिसम्बर, 1992 को प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्ति।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘हिन्दी कथा साहित्य और उसके विकास पर पाठकों की रुचि का प्रभाव’ (1966), ‘हिन्दी उपन्यास कोश’ : खंड—1 (1968), ‘हिन्दी उपन्यास कोश’ : खंड—2 (1969), ‘उपन्यास का शिल्प’ (1973), ‘अज्ञेय और उनके उपन्यास’ (1975), ‘हिन्दी भाषा का विकास’ (1995), ‘हिन्दी कहानी का इतिहास’—1 (2008), ‘हिन्दी कहानी का इतिहास’—2 (2011), ‘हिन्दी कहानी का इतिहास’—3 (2014); उपन्यास की पहचान शृंखला के अन्तर्गत : ‘शेखर : एक जीवनी’ (1975), ‘गोदान : नया परिप्रेक्ष्य’ (1982), ‘रंगभूमि : पुनर्मूल्यांकन’ (1983), ‘मैला आँचल’ (2000), ‘दिव्या’ (2001), ‘महाभोज’ (2002), ‘हिन्दी उपन्यास का इतिहास’ (2002), ‘उपन्यास की संरचना’ (2005),  ‘अज्ञेय और उनका कथा-साहित्य’ (2010)।

सम्पादन : पं. गौरीदत्त कृत ‘देवरानी-जेठानी की कहानी’ (1966), ‘हिन्दी साहित्याब्द कोश : 1967-1980’ (1968-81), ‘राष्ट्रकवि दिनकर’ (1975)। जुलाई 1967 से ‘समीक्षा’ पत्रिका का कई वर्षों तक सम्पादन-प्रकाशन।

निधन : 25 सितम्बर, 2015

 

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