भारतीय जीवन-दृष्टि को रूपायित, व्याख्यायित एवं परिष्कृत करने वाला संत तुलसीदास का काव्य आज भी देश की जनता के मन-प्राण में समाया हुआ है। ध्यान देने की बात तो यह है कि शिक्षित और अशिक्षित सभी उसे समान आदर और सम्मान देकर भावविभोर होते हैं। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने ठीक ही कहा है कि ‘गहि न जाइ अस अद्भुत बानी।’ वस्तुतः तुलसी-काव्य में इतना मर्म और भारतीय संस्कृति का व्यापक फलक समाहित है कि उसमें नयी-नयी प्रेरणाओं के अनन्त स्रोत समाहित हैं। उनकी काव्य-सरिता में अवगाहन करने वाले को सदा नयी स्फूर्ति और नयी चेतना मिलती रहेगी। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने विनम्र भाव से तुलसी-काव्य के मर्म तक पहुँचने की बात कही है लेकिन सच्चाई यह है कि उसकी आत्म-निमग्नता और सांस्कृतिक दृष्टि ने अप्रतिम सफलताएँ प्राप्त की हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि तुलसी-काव्य के प्रेमियों को इस पुस्तक से अपार तुष्टि प्राप्त होगी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1990 |
Edition Year | 2024, Ed. 4th |
Pages | 252p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 23.5 X 15 X 2 |