Tulsi Kavya Mein Sahityik Abhipray

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Tulsi-Kavya Mein Sahityik Abhipray
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भक्ति कविता स्वयं में साहित्यिक परम्परा से जुड़ी प्रतिबद्ध भारतीय आध्यात्मिक कविता ही है और अब उन आलोचकों की मान्यताएँ ख़ारिज हो चुकी हैं जो कबीर तथा तुलसीदास जैसे श्रेष्ठतम काव्य सर्जकों को साहित्येतर श्रेणी में रखते रहे हैं।

तुलसी की आध्यात्मिक कविता की व्याख्या केवल उनके द्वारा अभिव्यक्त भावात्मक संवेदनाओं से ही न की जाकर उन सन्दर्भों से भी किया जाना अपेक्षित है—जो साहित्य एवं सर्जन के संरचनात्मक मानदंड के रूप में परम्परा में जाने जाते रहे हैं—और जिनको कलात्मक परम्परा के कवियों यथा—कालिदास, भारवि, श्रीहर्ष आदि ने अपनाया है। ये मानदंड हैं, साहित्यिक अभिप्राय अर्थात् कवि के कल्पना प्रसूत कलात्मक मानक जैसे—विविध प्रकार के कवि समय, काव्य रूढ़ियाँ, काल्पनिक कथाएँ, अलंकार विधान की प्रचलित उपमान तथा उपमेय परम्पराएँ आदि।

गोस्वामी तुलसीदास अपनी व्यक्ति काव्य-प्रतिमा के प्रति विनयोक्ति जैसा भाव प्रगट करते हुए भी भारतीय कविता की शास्त्रीय परम्पराओं की वे उपेक्षा नहीं करते। इन सबके लिए मानस में वे 'काव्य प्रौढ़ि' एवं ‘काव्य छाया’ शब्दों का प्रयोग करके इंगित करते हैं कि भारतीय कविता की वैभवमयी परम्परा को त्याग कर कविता का सर्जन किसी भारतीय कवि के लिए सम्भव नहीं है। प्रस्तुत अध्ययन का गन्तव्य इसी सन्दर्भ को स्पष्ट करना रहा है कि तुलसी जैसे श्रेष्ठ आध्यात्मिक कवि की कविता भी भारतीय कविता की कलात्मक परम्परा से पूरी तरह जुड़ी है और उसे किसी भी तरह से धार्मिक साहित्य की श्रेणी में रखकर एकांगी एवं संकीर्ण नहीं बनाया जाना चाहिए। आध्यात्मिक कविता के श्रेष्ठतम मानक भारतीय कविता तथा कला के मानक हैं—और उन्हीं से हम भारतीयों की पहचान भी सम्भव है।

—डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 375p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Janardan Upadhyay

Author: Janardan Upadhyay

जनार्दन उपाध्याय


जन्म : 15 जून, 1950; उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद जनपद में सोहावल क्षेत्र का अगेथुआ गाँव।
शिक्षा : प्रारम्भिक तथा माध्यमिक शिक्षा गाँव क्षेत्र के विद्यालयों से, स्नातक एवं स्नातकोत्तर शिक्षा का.सु. साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय फ़ैज़ाबाद से तथा शोध उपाधि (डी.फिल.) इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1976 में।
सन् 1977 से निरन्तर स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं में हिन्दी भाषा-साहित्य का अध्यापन। सम्प्रति, कामता प्रसाद सुन्दर लाल साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अयोध्या-फ़ैज़ाबाद (उ.प्र.) में हिन्दी विभाग के रीडर एवं अध्यक्ष।
रुचि : कला, साहित्य, संस्कृति सम्बन्धी स्वाध्याय एवं लेखन तथा यथासामर्थ्य लोकसेवा के प्रकल्पों में मनोयोगपूर्ण भागीदारी। राम-काव्य-परम्परा, तुलसी-साहित्य तथा अवध क्षेत्रीय लोकधारा के काव्य और भाषाशास्‍त्र के अनुशीलन की गहरी रुझान।
प्रकाशन एवं अन्य : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, सन्दर्भ व स्मृति-ग्रन्थों में कविताओं, गीतों, लेखों, शोधपत्रों आदि का प्रकाशन। संगोष्ठियों एवं परिसंवादों में वक्तृत्व तथा आकाशवाणी से प्रसारित वार्ताएँ। अवध विश्वविद्यालय शोध-पत्रिका, साकेत महाविद्यालय की मुखपत्रिका ‘साकेत-सुधा’ अवधी-संस्थान की पत्रिका  ‘अवधी', रामायण मेला अयोध्या की पत्रिका ‘तुलसीदल' आदि के सम्पादन-कार्य में दायित्व-निर्वाह।
अंगीकृत संस्थाएँ : अवधी साहित्य-संस्थान, अयोध्या के तीन वर्ष तक प्रचार मंत्री, उ.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पाँच वर्ष तक स्थायी समिति-सदस्य, ‘साहित्यमंगलम्' संस्था के संस्थापक अध्यक्ष, विमलादेवी फ़ाउंडेशन न्यास, अयोध्‍या के सदस्य, साहित्यिक संस्था 'वाग्भारती' के उपाध्यक्ष।

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